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भगवान अरिष्टनेमि की ऐतिहासिकता
प्रभासपुराण में भी अरिष्टनेमि की स्तुति की गई है ।१६
महाभारत के अनुशासन पर्व, अध्याय १४६ में विष्णुसहस्र नाम में दो स्थानों पर 'शूरः शौरिर्जनेश्वरः' पद व्यवहृत हुआ है। जैसे
अशोकस्तारणस्तारः शूरः शौरिर्जनेश्वरः । अनुकूलः शतावर्तः पद्मी पद्मनिभेक्षणः ॥५०॥ कालनेमि महावीरः शौरिः शूरजनेश्वरः ।.
त्रिलोकात्मा त्रिलोकेशः केशवः केशिहाहरिः ।।८२। इन श्लोकों में 'शूरः शौरिर्जनेश्वरः' शब्दों के स्थान में 'शूरः शौरिजिनेश्वरः पाठ मानकर अरिष्टनेमि अर्थ किया गया है।
स्मरण रखना चाहिए कि यहाँ पर श्रीकृष्ण के लिए शौरि' शब्द का प्रयोग हुआ है। वर्तमान में आगरा जिले के बटेश्वर के सन्निकट शौरिपुर नामक स्थान है। वही प्राचीनयुग में यादवों की राजधानी थी। जरासंध के भय से यादव वहां से भागकर द्वारिका में जा बसे । शौरिपुर में ही भगवान् अरिष्टनेमि का जन्म हुआ था, एतदर्थ उन्हें 'शौरि' भी कहा गया है। वे जिनेश्वर तो थे ही अतः यहाँ 'शूरः शौरिजिनेश्वरः' पाठ अधिक तर्कसंगत लगता है । क्योंकि वैदिक परम्परा के ग्रन्थों में कहीं पर भी शौरिपुर के साथ यादवों का सम्बन्ध नहीं बताया, अतः महाभारत में श्री कृष्ण को 'शौरि' लिखना विचारणीय अवश्य है।
भगवान् अरिष्टनेमि का नाम अहिंसा की अखण्ड ज्योति जगाने के कारण इतना अत्यधिक लोकप्रिय हुआ कि महात्मा बुद्ध के नामों की सूची में एक नाम अरिष्टनेमि का भी है। लंकावतार के तृतीय परिवर्तन में बुद्ध के अनेक नाम दिये हैं। वहाँ लिखा है-जिस प्रकार एक ही वस्तु के अनेक नाम प्रयुक्त होते हैं उसी प्रकार बुद्ध
१६. कैलाशे विमले रम्ये वृषभोऽयं जिनेश्वरः ।
चकार स्वावतारं च सर्वज्ञः सर्वगः शिवः । रेवताद्रौ जिनो नेमियुगादिविमलाचले । ऋषीणां याश्रमादेव मुक्तिमार्गस्य कारणम् ॥
-प्रभासपुराण ४६-५० १७. मोक्षमार्ग प्रकाश-पं० टोडरमल
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