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________________ ३० (२) सौधर्म देवलोक में : धनमुनि और धनवती दोनों आयु पूर्णकर प्रथम सौधर्म कल्प में शक के सामानिक महधिक देव हुए । २१ धनमुनि के दोनों भाई भी महान् साधना कर सौधर्म देवलोक में उत्पन्न हुए । २२ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण (३) चित्रगति और रत्नवती : प्रस्तुत भरत क्ष ेत्र के वैताद्यगिरि की उत्तरश्रेणी में सूरतेज नामक नगर था। वहां पर सूर नामक एक चक्रवर्ती राजा राज्य करता था । २३ विद्युन्मति उस चक्रवर्ती की महारानी थी । २४ एक दिन धनकुमार का जीव सौधर्म देवलोक का आयु पूर्ण कर विद्यन्मति की कुक्षि में आया । शुभ दिन जन्म लेने पर बालक का नाम चित्रगति रखा गया । २५ वैतादयगिरि की दक्षिण श्रेणी में शिवमन्दिर नामक नगर था । वहां का राजा अनंगसिंह था । रानी का नाम शशिप्रभा था । धनवती का जीव सौधर्म देवलोक की आयु पूर्ण कर वहां पर उत्पन्न २१. ( क ) मासान्ते तौ विपद्योभौ कल्पे सौधर्मनामनि । शकसामानिको देवावजायेतां महद्धिकौ || (ख) इअ दुन्नि वि पवज्जं काऊणं अणसणं च अकलंकं । सोहम्मे सामाणिअदेवा जाया महिड्ढीआ || २२. (क) त्रिषष्टि० ८।१३६ (ख) भव-भावना ४५८ २३. इतोऽत्र भरते वैताढ्योत्तरश्रेणिभूषणे । सूरतेज: पुरे सूर इति खेचरचयप्रभु ॥ — त्रिषष्टि० ८।१।१३५ -भव-भावना ४५७, पृ० २६ २४. वहीं ८।१।१३८ २५. पुण्येऽहनि ददौ चित्रगतिरित्यभिधां पिता ॥ Jain Education International -- त्रिषष्टि० ८।१।१३७ — त्रिषष्टि० ८|१|१४१ (ख) चित्तगइत्ति पट्ठिअमिस्स नामं विभूईए । For Private & Personal Use Only - भव-भावना ४७५ www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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