SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अरिष्टनेमिः पूर्वभव ३१ हुआ । उसका नाम रत्नवती रखा गया । २६ रत्नवती रूप में देव कन्या के समान थी । एक दिन राजा अनंगसिंह ने किसी निमित्तज्ञ से प्रश्न किया - रत्नवती का पति कौन होगा ? निमित्तज्ञ ने अपनी विद्या के बल से कहा - " जो तुम्हारे पास से खड्ग रत्न को ले जायगा, सिद्धायतन में जिस पर देवगण पुष्पवृष्टि करेंगे, जो व्यक्ति मानव लोक में मुकुट के समान शिरोमणि है, वही पुरुष रत्नवती का पति होगा । २७ यह भविष्यवाणी सुनकर राजा बहुत ही प्रसन्न हुआ । उस समय चक्रपुर का अधिपति सुग्रीव नामक राजा था । उसके यशस्वती और भद्रा नामक ये दो पत्नियां थीं । यशस्वती के सुमित्र और भद्रा के पद्म नामक पुत्र हुआ । २" दोनों राजकुमार समान वातावरण में पले थे किन्तु उनके स्वभाव में दिन-रात का अन्तर था । एक की प्रकृति सरल, सरस और विनीत थी, दूसरे की कठोर व मायायुक्त थी । २१ एक दिन महारानी भद्रा ने विचारा -जब तक सुमित्र जीवित रहेगा तब तक मेरे पुत्र को राज्य नहीं मिल सकता । उसने भोजन में सुमित्र को तीव्र जहर दे दिया । जहर से उसके सारे शरीर में अपार कष्ट होने लगा जब यह वृत्त राजा सुग्रीव २६. इतश्चात्रव वैताढ्ये दक्षिणश्रेणिवर्तिनी । अनंगसिंहो राजा भून्नगरे शिवमन्दिरे ॥ पत्नी शशिमुखी तस्य नामतोऽभूच्छशिप्रभा । च्युत्वा धनवतीजीवस्तस्याः कुक्षाववातरत् ॥ " तस्या रत्नवतीत्याख्यां पिता चक्रे शुभेऽहनि ॥ – त्रिषष्टि० ८।१।१४३ से १४६ २७. त्रिषष्टि० ८।१।१४८ से १५० (ख) भव - भावना ४६३-४६५, पृ० ३६ २८. त्रिषष्टि ८।१।१५२-१५३ २६. सुमित्रस्तत्र गंभीरो विनयी नयवत्सलः । कृतज्ञोऽर्हच्छासनस्थ: पद्मस्त्वपरथाभवत् ॥ Jain Education International — त्रिषष्टि० ८० ८|१|१५४ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy