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________________ ३२ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण को ज्ञात हुआ तब वह सीधा दौड़कर वहाँ आया, अनेक उपचार किए, किन्तु विष न उतरा। बिजली की लहरों की तरह सर्वत्र यह सूचना फैल गई कि भद्रा ने सुमित्र को जहर दिया है। पाप के प्रकट हो जाने से भद्रा को वहाँ से भागना पड़ा। राजा और प्रजा सभी सुमित्र की यह स्थिति देखकर आकुल-व्याकुल हो गये।३१ ___ उस समय चित्रगति विद्याधर विद्या के बल से आकाश में होकर कहीं जा रहा था। उसने नगरनिवासियों को भय एवं चिन्ता से ग्रस्त होकर दौड़धूप करते देखा तो वह नीचे उतरा । जन-जन की जिह्वा पर सुमित्र के सदगुणों की चर्चा और रानी के दृष्टकृत्य के प्रति निन्दा को सुनकर वह शीघ्र ही सुमित्र के पास पहुँचा। मंत्रबल से उसने उसी समय सूमित्र का जहर उतार दिया।३२ सुमित्र को पूर्ण स्वस्थ देखकर राजा और प्रजा को अत्यधिक प्रसन्नता हुई। जीवनदान देने के कारण चित्रगति विद्याधर के साथ समित्र का अत्यधिक प्रम हो गया। चित्रगति जाना चाहता था किन्तु समित्र ने कहा- "मुझे समाचार मिले हैं कि यहाँ पर सुयश नामक केवलज्ञानी शीघ्र ही पधारने वाले हैं। उनके दर्शन कर फिर तुम यहाँ से जाना । ३०. त्रिषष्टि० ८।१।१५५ से १५८ __ भव-भावना ५०६-५०६ ३१. त्रिषष्टि० ८।१।१५८-१५६ ३२. अत्रान्तरे चित्रगतिः क्रीडया विचरन् दिवि, विमानेनागतस्त्रापश्यच्छोकातुरं पुरम् ॥ विषव्यतिकरं तं च ज्ञात्वोत्तीर्य विमानतः, सोऽभ्यर्षिचत्तं कुमारं जलविद्याभिमंत्रितैः ।। ___ -त्रिषष्टि ० ८।१।१६१-१६२ ३३. सुमित्रोऽप्यब्रवीभ्रात: सुयशा नाम केवली। अत्रासन्नप्रदेशेषु विहरन्नस्ति संप्रति ॥ क्रमेण तमिहायातं वन्दित्वा गन्तुमर्हसि । तदागमनकालं तदत्र व परिपालय ॥ -त्रिषष्टि० ८।१।१७२-७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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