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________________ अरिष्टनेमिः पूर्वभव सुयश केवली वहां पधारे। उनके उपदेश को सुनकर त्यागवैराग्य की भावना उद्बुद्ध हुई। उस समय चित्रगति ने श्रावक धर्म स्वीकार किया।३४ राजा सग्रीव ने केवली भगवान से प्रश्न किया-भगवन् ! सुमित्र को विष देकर इसकी अपर माता भद्रा कहाँ गई है ? - केवलज्ञानी भगवान् ने समाधान करते हुए कहा-राजन् ! मृत्यु के भय से रानी भद्रा राजमहल से निकलकर जंगल में पहुची। उसके शरीर पर बहुमूल्य आभूषण थे। चोरों ने उसके सारे आभूषण छीन लिए, और भद्रा को पल्लीपति के पास ले जाकर उसे समर्पित कर दिया। पल्लोपति ने उसे एक श्रेष्ठी को बेच दी। वहाँ पर भी वह न रह सकी । वह पुनः जंगल में गई, अग्नि में जलकर प्राण त्याग दिये, और इस समय वह प्रथम नरक में उत्पन्न हुई। वहाँ से आयु पूर्ण कर वह चांडाल के घर स्त्री बनेगी। एकदिन दोनों में कलह होगा। चण्डाल उसे मार डालेगा। वह मरकर तृतीय नरक में जायेगी, फिर तिर्यक् योनियों में परिभ्रमण करेगी। केवली भगवान के मुखारविन्द से सुग्रीव राजा ने रानी भद्रा की स्थिति सुनी, मन में वैराग्य आया। उसी समय पुत्र को राज्य दे वह प्रवजित हो गया ।३५ ।। चित्रगति अपने घर पहुँचा। एक दिन चित्रगति को किसी ने सूचना दी कि अनंगसिंह के पुत्र कमल ने सुमित्र की बहिन का अपहरण किया है । जिससे सुमित्र शोकाकुल है । उसी समय चित्रगति सैन्य लेकर वहाँ पहुँचा। कमल का उन्मूलन कर दिया। पुत्र को पराजित हुआ जानकर अनंगसिंह को क्रोध आया, वह चित्रगति को पराजित करने के लिए युद्ध के मैदान में आया परन्तु वह चित्रगति के समाने टिक न सका। अन्त में उसने देवनामी खड्गरत्न का स्मरण किया। स्मरण करते ही चमचमाता हुआ खड्गरत्न उसके हाथ में आ गया। तभी उसने चित्रगति से कहा-अरे बालक ! अब तू युद्ध के मैदान से भाग जा, अन्यथा यह खड्ग तेरा शिरच्छेद कर डालेगा।३६ ३४. त्रिषष्टि० ८।१।१७८।१७६ ३५. त्रिषष्टि० ८।१।१६२ ३६. अनंगो दुर्जयं ज्ञात्वा रिपु जेतुमनाश्च तम् । देवतादत्तमस्मार्षीत् खङ्गरत्नं क्रमागतम् ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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