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भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण
चित्रगति ने मुस्कराते हुए कहा-क्या तुम इस लोहे के टुकड़े से मुझे भयभीत करना चाहते हो ? धिक्कार है तुम्हें !3° तुम्हारामिथ्या अहंकार क्षणभर में मैं नष्ट कर देता हूँ। उसने उसी समय विद्या के बल से चारों ओर भयंकर अंधकार कर दिया। उस गहरे अन्धकार में कोई किसी को देख नहीं सकता था। चित्रगति ने अनंगसिंह के हाथ से खड़गरत्न छीन लिया और सुमित्र की बहिन को लेकर चल दिया ।३८
शनैः शनैः अंधकार कम हआ। राजा अनंग ने देखा--उसके हाथ से कोई खड्गरत्न लेकर भाग गया है। उसे निमित्तज्ञ का कथन स्मरण आया कि जो खड्गरत्न ले जायेगा वही रत्नवती का पति होगा।३९ ____ चित्रगति ने सुमित्र को उसकी बहिन लौटा दी । बहिन के अपहरण से सुमित्र को वैराग्य हुआ। उसने सुयश केवली के पास दीक्षा ग्रहण की। नौ पूर्वो का अध्ययन किया। एक दिन सुमित्र मुनि एकान्त स्थान में कायोत्सर्ग मुद्रा में ध्यानस्थ खड़े थे। उस समय उसका लघुभ्राता भद्रा का पुत्र पद्म वहां आया और उसने
ज्वालाशतदुरालोकं द्विषल्लोकान्तकोपमम् । कपाणरत्नं तत्पाणावापपात क्षणादपि ।। कपाणपाणि: स प्रोचे रे रेऽपसर बालक ! पुरतस्तिष्ठतश्छेत्स्ये शिरस्ते बिसकांडवत् ।।
-त्रिषष्टि० ८।१।२०४-२०६ (ख) भव-भावना ३७. ऊन्ने चित्रगतिश्चित्रमन्यादृगिव वीक्ष्यसे । बलेन लोहखंडस्य धिक् त्वां स्वबलवितम् ॥
-त्रिषष्टि० ८।१।२०७ ३८. इत्युक्त्वा विद्यया ध्वान्तं विचक्रे तत्र सर्वतः ।
पुरः स्थमप्यपश्यन्तो द्विषोऽस्थ लिखिता इव ।। अथाच्छिदच्चित्रगतिस्तं खङ्ग तत्कराद्रुतम् । द्राक् सुमित्रस्य भगिनी जग्राह च जगाम च ॥
-त्रिषष्टि० ८।१।२०८-६ ३६. त्रिषष्टि० ८।१।२१, ११ ।
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