Book Title: Bhagvati Sutra Part 05
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 11
________________ शाक १५ पृष्ठ क्रमांक विषय पृष्ठ | क्रमांक विषय ४९१ गोशालक चरित्र २३६८ ५१५ गोशालक की दुर्दशा २४:४१ ४९२ भगवान् से गोशालक का समागम २३७६ ५१ः गोशालक को तेज-शक्ति और ४६३ शिष्यत्व ग्रहण २३८१ दाम्भिक चेप्टा २४४३ ४६४ तिल का पौधा और गोशालक ५१४ पानक-अपानक २४४६ की कुचेष्टा २३८७ ५१५ आजीविकोपासक अयंपुल २४४६ ४९५ तेजोलेश्या के प्रहार से गोशालक ५१६ प्रतिष्ठा की महती लालसा २४५५ की रक्षा २३९० ५१७ सम्यग्दर्शन और अन्तिम आदेश २४५७ ४९६ गोशालक का पृथक् होना २३६६ ५१८ आदेश का दाम्भिक पालन २४६० ४९७ तेजोलेश्या को साधना २४०० ५१९ भगवान् का रोग और लोकापवाद २४६१ ४९८ जिन-प्रलापी गोशालक का रोष " ५२० सिंह अनगार का शोक २४६३ ४९९ व्यापारियों की दुर्दशा का दृष्टांत २४०३ ५२१ सिंह अनगार को सान्त्वना २४६६ ५.. श्रमण एवं श्रमण भगवंत का ५२२ रेवती के घर २४६७ तप-तेज २४१४ ५०१ श्रमणों को मौन रहने की सूचना २४१६ ५२३ रेवती को आश्चर्य और औषधि५०२ गोशालक का आगमन और दान २४६९ दाम्भिक प्रलाप २४१८ ५२४ रोगोपशमन २४७० २४७२ ५०३ गोशालक की चोर से सद्शता २४२८ / ५२५ सर्वानुभूति अनगार की गति ५०४ गोशालक द्वारा भगवान् का ५२६ सुनक्षत्र अनगार की गति २४७३ तिरस्कार २४२६ ५२७ गोशालक की गति २४७४ ५०५ सर्वानुभूति अनगार का देहोत्सर्ग २४३० ५२८ गोशालक का भावी मनुष्य-भव २४७५ ५०६ सुनक्षत्र मुनि का देहोत्सर्ग २४३२ | ५२९ विमलवाहन का अनार्यपन २४८० ५.७ आक्रमणकारी स्वयं आहत २४३४ / ५३० सुमंगल मुनि द्वारा विमलवाहन ५०८ जन-चर्चा २४३७ का विनाश ५०९ धर्मचर्चा का आदेश २४३८ ५३१ गोशालक का भव-भ्रमण २४८८ ५१० धर्म-चर्चा में गोशालक की पराजय २४३६ | ५३२ आराधना और केवलज्ञान २४९८ ५११ गोशालक के अनेक स्थविर ५३३ अपने उदाहरण से उपदेश दान भगवान् के आश्रय में २४४० और सिद्धि २५०. २४८४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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