Book Title: Bhagvati Sutra Part 05
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 10
________________ पृष्ठ शतक १४ क्रमांक विषय पृष्ठ । क्रमांक विषय उद्देशक १ . उद्देशक ६ ४५८ चरम परम के मध्य की स्थिति २२७६ / ४७५ नैरयिकादि के आहारादि २३२० ४५९ नैरयिकों की शीघ्र गति २२७८ | ४७६ देवेन्द्र के भोग २३२२ ४६० नैरयिक अनन्तरोपपन्नकादि २२८० उद्देशक ७ उद्देशक २ ४७७ भगवान् और गौतम का भवान्तरीय सम्बन्ध २३२६ ४६१ उन्माद के भेद २२८७ ४७८ द्रव्यादि की तुल्यता २३२६ ४६२ देवकृत जल-वर्षा २२९१ ४७९ आहारादि में मूच्छित-अमूच्छित ४६३ देवकृत तमस्काय २२९३ अनगार २३३६ २३३८ ४८० लव-सप्तम देव उद्देशक ३ ४६४ अनगार की अवगणना करनेवाले देव २२९५ उद्देशक ८ ४६५ नरयिकादि में आदर-सत्कार २२९७ / ४८१ पृथ्वियों और देवलोकों का अंतर २३४१ ४६६ देवों में छोटे-बड़े का आदर-सम्मान २२९९ | ४८२ शाल वृक्षादि का परभव २३४५ ४६७ नैरयिकों के पुद्गल परिणाम २३०२ | ४८३ अम्बड़ परिव्राजक २३४७ ४८४ अव्याबाध देवशक्ति २३४९ ... उद्देशक ४ ४८५ जृम्भक देवों के भेद और आवास २३५१ ४६८ पुद्गल के वर्णादि परिवर्तन २३०३ उद्देशक ९ ४६६ जीव का दुःख और सुख २३.५ ४८६ भावितात्मा अनगार और प्रका४७० परमाणु की शाश्वतता २३०६ शित पुद्गल २३५४ ४७१ जीव-अजीव परिणाम २३०८ ४८७ नैरयिकों और देवों के पुद्गल २३५६ उद्देशक ५ ४८८ सूर्य का अर्थ २३५८ ४८९ श्रमण-प्रिन्थ का सुख २३५९ ४७२ जीवों का अग्नि प्रवेश २३१० ४७३ जीवों के इप्टानिष्ट शब्दादि २३१६ | उद्देशक १० ४७४ देव की पुद्गल सहायो विशेष प्रवृत्ति २३१८४९० केवली और सिद्ध का ज्ञान २३६२ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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