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भगवती सूत्र - १३ उ. १ तरकावालों की संख्या विस्तारादि
स्त्री-वेदी जीव उत्पन्न होते हैं ? २३ कितने पुरुष वेदी जीव उत्पन्न होते हैं ? २४ कितने नपुंसक वेदी जीव उत्पन्न होते हैं ? २५ कितने क्रोध - कषायी जीव उत्पन्न होते हैं ? यावत् २६ से २८ कितने लोभ कषायी जीव उत्पन्न होते हैं ? २९ कितने श्रोत्रेन्द्रिय के उपयोग वाले जीव उत्पन्न होते हैं ? यावत् ३० से ३३ कितने स्पर्शनेन्द्रिय के उपयोग वाले जीव उत्पन्न होते है ? ३४ कितने नोइन्द्रिय के उपयोग वाले जीव उत्पन्न होते हैं ? ३५ कितने मनःयोगी जीव उत्पन्न होते हैं ? ३६ कितने वचन- योगी जीव उत्पन्न होते हैं ? ३७ कितने काय योगी जीव उत्पन्न होते हैं ? ३८ कितने साकारोपयोग वाले जीव उत्पन्न होते है ? और ३९ कितने अनाकारोपयोग वाले जीव उत्पन्न होते हैं ?
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उत्तर - हे गौतम ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से संख्येयविस्तृत नरकावासों में एक समय में जघन्य एक, दो या तीन उत्कृष्ट संख्यात नैरयिक उत्पन्न होते हैं ? २ जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात कापोत लेशी जीव उत्पन्न होते हैं । ३ जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात कृष्ण- पाक्षिक जीव उत्पन्न होते हैं । इसी प्रकार शुक्ल पाक्षिक संज्ञी, असंज्ञी, भवसिद्धिक, अभवसिद्धिक, आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मति अज्ञानी, श्रुतअज्ञानी और विभंगज्ञानी के विषय में भी इसी प्रकार . कहना चाहिये । चक्षुदर्शनी जीव उत्पन्न नहीं होते । जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात अचक्षुदर्शन वाले जीव उत्पन्न होते हैं । इसी प्रकार अवधिदर्शनी और आहार-संज्ञा के उपयोग वाले यावत् परिग्रह- संज्ञा के उपयोग वाले भी कहना चाहिये । स्त्री-वेदी जीव उत्पन्न नहीं होते । पुरुष- वेदी जीव भी उत्पन्न नहीं होते । मात्र नपुंसक वेदी ही उत्पन्न होते हैं, जघन्य एक दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात | इसी प्रकार क्रोध-कषायी यावत् लोभ-कषायी उत्पन्न होते है। श्रोत्रेन्द्रिय के उपयोग वाले वहाँ उत्पन्न नहीं होते। इसी प्रकार यावत् स्पर्शनेन्द्रिय के उपयोग वाले जीव भी उत्पन्न नहीं होते । जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात नोइन्द्रिय के उपयोग वाले उत्पन्न होते हैं । मन योगी और वचन योगी
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