Book Title: Balbodh Jain Dharm Part 01
Author(s): Dayachand Goyaliya
Publisher: Daya Sudhakar Karyalaya

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Page 7
________________ किसीका जी मत दुखाओ। [३ तीसरा पाठ। जीव और अजीव । जीव-उन्हें कहते हैं जो जीते हों, जिनमें जान हो, जिनमें जानने देखनेकी ताक़त हो, जैसे आदभा, घोड़ा, बैल, कीड़े मकोड़े वगैरह। भावार्थ-जगतमें हम जितने पुरुष, स्त्री, पशु, पक्षी, कीड़े. मकोड़े वगैरहको खाले, पीते, बलते, फिरते देखते हैं, उन सबमें जीव है। __ अजीव-उन्हें कहते हैं जिनमें जान न हो, जैसे-सूखी मिट्टी, इंट, पत्थर. लकड़ी, मेज़, कुरसी, कलम, कागज, टोपी, रोटी वगैरह । जीवके भेद । जीव दो तरहके होते हैं-एक मुक्त जीव और दूसरे संसारी जीव ! ___१. मुक्त जीव-उन्हें कहते हैं जो संमारसे छूट गये हैं अर्थात् जिनको मोक्ष होगया है और जिन्होंने मदाके लिये सबा सुख पा लिया है और जो कभी संमारमें लौटकर नहीं आते। २. मंसारी जीव वे हैं जो संसारमें घूमकर

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