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श्री आचार्यभगवन्तों का स्वरूप श्री अरिहंत परमात्मा के अभाव में "शुद्ध प्ररूपक गुण थकी, अरिहा सम भाख्या रे..." (नवपदजी की पूजा की ढाल) के वचन के अनुसार अरिहंत के समान तथा धर्म के नायक ऐसे श्री आचार्य भगवन्त ३६ गुणों से अलंकृत होते हैं, 'श्री पंचिंदिय सूत्र' में उसका विस्तार से वर्णन किया गया है। फिर भी अत्यन्त संक्षिप्त में यहाँ बतलाया जा रहा है ।[एक से पाँच ]:- पाँच इन्द्रियों के विषयों का निग्रह करते हैं,[६ से १४] :-नौ प्रकार की ब्रह्मचर्य गुप्ति को धारण करते हैं, [१५ से १८] :- क्रोध, मान, माया तथा लोभ रूपी चार कषायों से मुक्त रहते हैं, [१९ से २३] :- पाँच महाव्रतों से युक्त हैं, [२४ से २८] :- पाच प्रकार के आचारों का पालन करते हैं, [२९ से ३३] :- पाँच समिति का पालन करते हैं तथा [३४ से ३६] :- तीन गुप्तियों से गुप्त होते हैं। [अन्य ग्रन्थों के
अनुसार ये छत्तीस गुण छत्तीसी (३६४३६=१२९६) से भी सुशोभित होते हैं।] श्री उपाध्याय भगवन्तों का स्वरूप पाठक तथा वाचक के उपनाम से प्रसिद्ध श्री उपाध्याय भगवन्त सिद्धान्तों का अध्ययन करते हैं तथा कराते हैं, साथ ही शरण में आए हुए संयमी को संयम में स्थिर करने का महान कार्य करते हैं । युवराज तथा मन्त्री की उपमा को धारण करनेवाले श्री उपाध्याय भगवन्त गच्छ-समुदाय की अभ्यन्तर पर्षदा को स्वाध्याय-विनय-वेयावच्च आदि की शिक्षा देनेवाले होते हैं, वे २५ गणों से अलंकृत होते हैं।।
(१) श्री आचाराङ्ग सूत्र (२) श्री सूयगडाङ्ग सूत्र (३) श्री ठाणांग सूत्र (४) श्री समवायाङ्क सूत्र (५) श्री भगवती सूत्र (६) श्री ज्ञाताधर्मकथा सूत्र (७) श्री उपासकदशाङ्ग सूत्र (८) श्री अन्तःकृतदशांग सूत्र (९) श्री अनुत्तरोववाई सूत्र (१०) श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र (११) श्री विपाकसूत्र, ये ग्यारह अंग तथा (१) श्री उववाई सूत्र (२) श्री रायपसेणी सूत्र (३) श्री जीवाभिगम सूत्र (४) श्री पन्नवणा सूत्र (५) श्री जंबूद्वीपपन्नत्ति सूत्र (६) श्री चन्द्रपन्नत्ति सूत्र (७) श्री सूरपन्नत्ति सूत्र (८) श्री कप्पिया सूत्र (९) श्री कप्पवडंसिया सूत्र (१०) श्री पुफिया सूत्र (११) श्री पुण्फचूलिया सूत्र तथा (१२) श्री वण्हिदशाङ्ग सूत्र इन बारह उपाङ्गों को पढ़ें तथा पढ़ाए, इस प्रकार ये २३ गुण हैं (२४) चरणसित्तरि तथा (२५) करणसित्तरि का पालन करें, इस प्रकार कुल २५ गुण हैं।
श्री साधु भगवन्तों का स्वरूप जो मोक्ष प्राप्त करने के लिए सतत साधना करें तथा दूसरे जीवों को मोक्ष में जाने के लिए सहायता करें, वे साधु भगवन्त कहलाते हैं। उनके मुख्य २७ गुण होते हैं।
(१) सर्वथा प्राणातिपात-विरमण महाव्रत, (२) सर्वथा मृषावाद-विरमण महाव्रत, (३)सर्वथा अदत्ता-दान-विरमण महाव्रत, (४) सर्वथा मैथुन-विरमण महाव्रत, (५) सर्वथा परिग्रह-विरमण महाव्रत, (६) सर्वथा रात्रिभोजन-विरमण व्रत, (७) से (१२) पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वाउकाय, वनस्पतिकाय तथा त्रसकाय की रक्षा करें, (१३) से (१७) पाच इन्द्रियों के विषयों का निग्रह करें, (१८) लोभ का निग्रह करें, (१९)क्षमा को धारण करें, (२०) चित्त की निर्मलता रखें, (२१) विशुद्ध रूप से वस्त्र की पडिलेहणा करें, (२२) संयमयोग में प्रवृत्त करनेवाली पाँच समिति तथा तीन गुप्तियों का पालन करें, (निंदा-विकथा तथा अविवेक का त्याग करें) (२३) अकुशल मन का संरोध करें अर्थात् कुमार्ग में जाते हुए मन को रोकें, (२४) अकुशल वचन का संरोध करें, (२५) अकुशल काया का संरोध करें, (२६) शीत-उष्ण आदि २२ परिषहों को समभाव से सहन करें तथा (२७) मृत्यु आदि उपसर्ग को भी समभाव से सहन करें, इस प्रकार कुल २७ गुण हैं।
अनवरत मोक्षमार्ग की साधना करते हुए अनेक प्रकार के कष्टों को सहन करने के कारण उनका वर्ण काला होता है। पू. साधु-साध्वीजी भगवन्त का संयम से पवित्र शरीर मैल-पसीना आदि के कारण मलिन दिखाई देता है, अतः उनके प्रति अरुचि करने से विचिकित्सा अतिचार लगता है तथा उनका आदर तथा सम्मान करने से निर्विचिकित्सा आचार का पालन होता है।
इस प्रकार श्री अरिहंत भगवन्त के १२, श्री सिद्धभगवन्त के८,श्री आचार्य भगवन्त के ३६, श्री उपाध्याय भगवन्त के २५ तथा श्री साधु भगवन्तके २७ गुणों को जोड़ने पर कुल १०८ गुण पंच परमेष्ठि के होते हैं। i nternational
Jai S
Par PVPECIELLE
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