Book Title: Avashyaka Kriya Sadhna
Author(s): Ramyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
Publisher: Mokshpath Prakashan Ahmedabad

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Page 76
________________ • स्वाध्याय में उपयोगी पुस्तक सुयोग्य सापड़े पर रखें। (६) कहें 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सामायिक संदिसाई ? नवकारवाली डब्बी में रखें। गुरुभगवंत कहें 'संदिसावेह' तब 'इच्छं' कहें। • समय का उपयोग रखने के लिए रेतीवाली घड़ी अथवा (७) एक खमासमणा देकर खड़े होकर कहें 'इच्छाकारेण संदिसह चाबीवाली घड़ी निश्चित दूरी पर रखें। भगवन् ! सामायिक ठाउं?' गुरुभगवंत कहें 'ठावेह' तब 'इच्छं' कहें। • खिड़की-दरवाजे को साधना के दौरान बार-बार (८) उसके बाद दोनों हाथ जोड़कर एकबार श्री नवकारमंत्र बोलकर कहें खोलना-बंद करना न पड़े, ऐसी परिस्थिति में रखें। 'इच्छकारी भगवन् पसाय करी सामायिक दंडक उच्चरावोजी !' (१) पैरों के पंजे के बल पर बैठकर दाहिने हाथ की गुरुभगवंत 'करेमि भंते' का उच्चारण कराएँ अथवा पहले सामायिक हथेली को उलटी सर्पाकार में पुस्तक + सापडा स्वरूप लिए हुए 'श्रावक-श्राविका को' तथा श्राविका 'श्राविका को' उच्चारण स्थापनाचार्यजी के सामने रखकर तथा बाएं हाथ की कराए अथवा वह भी न हो तो सामायिक लेनेवाले साधक स्वयं 'मुख के हथेली में बंद किनारी वाला भाग बाहर दिखे इस प्रकार आगे मुहपत्ति रखकर करेमि भंते सूत्र बोलें। मुहपत्ति मुह से तीन अंगुल आगे रखकर 'श्री नमस्कार (९) उसके बाद खमासमणा देने के बाद खड़े होकर कहे 'इच्छाकारेण महामंत्र तथा श्री पंचिंदिय सूत्र' बोलकर स्थापना करें। संदिसह भगवन् ! बेसणे संदिसाहं?' गुरुभगवंत कहें -'संदिसावेह' तब • स्थापनाचार्यजी की स्थापना करने के बाद वह अंश मात्र 'इच्छं' कहकर एक खमासमणा देकर खड़े होकर कहे... ___ भी हिलने नहीं चाहिए तथा अनिवार्य संयोगों के अतिरिक्त (१०) 'इच्छाकरेण संदिसह भगवन् ! बेसणे ठाउं ?' गुरुभगवंत कहें एक स्थान से दूसरे स्थान पर नहीं ले जा सकते है। 'ठावेह' तब 'इच्छं' कहकर एक खमासमणा दें। • दो घड़ी के सामायिक में बिना कारण के उठना-बैठना, (११) उसके बाद 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सज्झाय संदिसाहुं ?' हिलना-डुलना, गमनागमन आदि नहीं करना चाहिए किन्तु गुरुभगवंत कहें 'संदिसावेह तब'इच्छं' कहकर एक खमासमणा दे। व्याख्यान-वाचना-गाथा लेने-देने की क्रिया करते समय (१२) उसके बाद 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सज्झाय करूं?' कहें. गुरुवंदन कर सकते हैं, उसके अतिरिक्त नहीं । फिर गुरुभगवंत कहें करेह' तब 'इच्छं' कहें उसके बाद.... (२) 'गुरु स्थापना करने के बाद सत्रह संडासा (प्रमार्जना (१३) पुरुष खड़े होकर अथवा बैठकर स्त्रिया खड़ी-खड़ी दोनों हाथ पूर्वक एक खमासमणा देना चाहिए। जोड़कर तीन बार श्री नवकारमंत्र का स्मरण करें। (३) उसके बाद खड़े होकर इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! नोट : 'करेमि भंते !' सूत्र के उच्चारण के बाद दो घड़ी (४८ मिनिट) ईरियावहियं पडिक्कमामि ?' बोलकर गुरुभगवंत से प्रश्न तक सामायिक करें । एक साथ तीन सामायिक करने की प्रथा प्रचलित है करें । गुरु भगवंत कहें 'पडिक्कमेह' उसके बाद कहें 'इच्छं, । उनमें अन्तिम आदेश 'सज्झाय करूं ?' के बदले 'सज्झाय में हूँ।' इच्छामि...तस्स उत्तरी...अन्नत्थ सूत्र' 'अप्पाणं वोसिरामि दूसरी-तीसरी सामायिक लेते समय (सामायिक पारने की विधि किये बिना) बोलकर १९ दोष रहित 'एक लोगस्स, चंदेसु निम्मलयरा' बोलें । लगातार चौथी सामायिक करने से पूर्व सामायिक पारने के बाद तक का काउस्सग्ग करें। (श्री लोगस्स सूत्र नहीं आता हो ही सामायिक लेने की विधि करें। तो चार बार श्री नवकारमंत्र का काउस्सग्ग करें।) व्याख्यान-वाचना श्रवण करते समय बीच में सामायिक लेने-काउस्सग्ग पूर्ण हो, तब हाथ उठाने से पहले 'नमो पारने की विधि करने से जिनवाणी की आशातना न लगे, इसलिए 'जाव अरिहंताणं' बोलते हुए पारना चाहिए। नियम' के बदले 'जाव सुयं (सुअं)' बोलकर श्रवण करें तथा कम से कम (४) उसके बाद लोगस्स सूत्र पूरा बोलकर दूसरी बार एक दो घड़ी (४८ मिनिट) उसमें बैठे, अधिक समय के लिए कोई समय खमासमणा दें...फिर खड़े होकर... मर्यादा नहीं है । जिनवाणी पूर्ण हो, तब (श्रुत सामायिक) 'जावसुयं' (५) 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सामायिक मुँहपत्ति सामायिक पूर्ण हुई समझें । ४८ मिनिट के प्रमाण से सामायिक की पडिलेहं ?' कहें, तब गुरुभगवंत कहें 'पडिलेह'...तब संख्या की गिनती की जा सकती है । परन्तु दूसरी-तीसरी सामायिक पूर्ण 'इच्छं' कहकर ५० (पचास) बोल से मुहपत्ति-शरीर की करने के लिए ४८ मिनिट से कम समय की पूर्ति करने के लिए बैठा नहीं जा पडिलेहणा करें। फिर एक खमासमणा देकर खड़े रहें। सकता है। सामायिक पारने (पूर्ण करने) की विधि • सत्तर संडासा पूर्वक एक खमासमणा दें । फिर खड़े. 'नमो अरिहंताणं' बोलते हुए काउस्सग्ग पारकर हाथ जोड़कर श्री होकर कहें.. लोगस्स सूत्र पूरा बोलें। 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! ईरियावहियं पडिक्कमामि उसके बाद खमासमणा देकर खड़े होकर 'इच्छाकारेण संहिसह ?' तब गुरुभगवंत कहें 'पडिक्कमेह' फिर 'इच्छं' बोलें। भगवन् ! मुहपत्ति पडिलेहं?' गुरुभगवंत कहें 'पडिलेवेह' उसके श्री ईरियावहियं सूत्र - तस्स उत्तरी सूत्र-अन्नत्थ सूत्र बाद 'इच्छं' बोलें, फिर मन में क्रमशः ५० बोल बोलकर क्रमशः बोलें। मुहपत्ति एवं शरीर की पडिलेहणा करें। 'एक लोगस्स चंदेसु निम्मलयरा तक' न आए तो चार उसके बाद एक खमासमणा देकर खड़े होकर कहें 'इच्छाकारण बार श्री नवकारमंत्र का काउस्सग्ग करें। संहिसह भगवन् ! सामायिक पारूं ?' तब गुरुभगवंत कहें Parervatio L ISonly www.jane regleforg

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