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न्हवण जल लगाने की विधि
मंदिर में प्रवेशद्वार के पास किसी भी दिशा से प्रभु की दृष्टि न पड़े, ऐसी जगह पर
स्वच्छ कटोरे में ढक्कन के साथ न्हवण जल रखना घण्टनाद
चाहिए। अपने शरीर को न्हवण जल का स्पर्श कराने के कारण, उस समय प्रभुजी की दृष्टि पड़े, तो अनादर होता है। साधन छोटा हो तो उस साधन के नीचे भी एक
थाली रखनी चाहिए। • न्हवणजल को अनामिका ऊँगली से स्पर्श कर
क्रमशः प्रत्येक अंग पर लगाना चाहिए। प्रभुजी के अंग को स्पर्श कर परम पवित्र हुआ न्हवण जल जमीन पर नहीं गिरना चाहिए। न्हवण जल को दाहिनी तथा बांई आंख को स्पर्श करते समय यह भावना रखनी चाहिए कि "मेरी आखों में रहनेवाली दोष दृष्टि तथा काम विकार पांचो अंगो में न्वहण जल लगाए। इसके प्रभाव से दूर हो।" उसके बाद दोनों कानों में स्पर्श करते हुए ऐसी भावना रखनी चाहिए कि "मेरे अन्दर रहनेवाली परदोष श्रवण तथा स्वगुण श्रवण के दोष दूर होकर जिनवाणी के श्रवण में मेरी रुचि जाग्रत हो।" उसके कंठ में स्पर्श करते हुए यह भावना रखनी चाहिए कि "मुझे स्वाद पर विजय प्राप्त हो, परनिन्दास्वप्रशंसा के दोष को निर्मूल होने के साथ गुणीजनों के गुण गाने की सदा तत्परता मिले।" उसके बाद हृदय पर स्पर्श करते हुए ऐसी भावना रखनी चाहिए कि "मेरे हृदय में सभी जीवों के प्रति मैत्रीभाव उत्पन्न हो तथा हे प्रभुजी ! आपका तथा आपकी आज्ञा का सदैव वास बना रहे।" तथा अन्त में नाभिकमल पर स्पर्श कराते हुए यह भावना रखनी चाहिए कि "मेरे कर्ममल मुक्त आठ रुचक
प्रदेश की भांति सर्व-आत्मप्रदेश सर्वथा सर्व कर्म मल मुक्त हो।" ऐसी भावना इस तरह प्रभुजी से
केशर तिलक अपने अंगो पर करते समय भी रखनी चाहिए। पीछे मडते समय चला जाना चाहिए। . न्हवण जल नाभि के नीचे अंगों पर नहीं लगाना चाहिए।
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चबूतरे पर बैठने की विधि प्रभुजी अथवा मंदिर की ओर पीठ न रहे, इस प्रकार बैठना चाहिए।
रास्ता अथवा सीढी छोड़कर एक ओर मौन धारण कर बैठना चाहिए। . आखें बंद कर मन में तीन बार श्री नवकार मन्त्र का जाप कर हृदय
में प्रभुजी का दर्शन करना चाहिए। • मेरा दुर्भाग्य है कि प्रभुजी को छोड़कर घर जाना पड़ रहा है, ऐसा
भाव रखकर खड़ा होना चाहिए।
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