Book Title: Avashyaka Kriya Sadhna
Author(s): Ramyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
Publisher: Mokshpath Prakashan Ahmedabad

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Page 204
________________ ४८. श्री मन्नह जिणाणं सज्झाय आदान नाम : श्री मन्नह जिणाणं विषयः गौण नाम : श्रावक कर्तव्य सूत्र मांगलिक श्रावक जीवन को पद :२० प्रतिक्रमण सुशोभित करनेवाले संपदा : २० और पौषध में अवश्य करने योग्य गुरु-अक्षर : २८ सुनते-बोलते लघु-अक्षर : १६२ ३६ कर्त्तव्यों का समय की मुद्रा। सर्व अक्षर : १९० वर्णन। छंद का नाम : गाहा; राग : जिण जम्म समये मेरु सिहरे...(स्नात्र पूजा) मूल सूत्र । उच्चारण में सहायक : पद क्रमानुसारी अर्थ मन्नह जिणाण-माणं, मन्-नह जिणाण-माणम्, जिनेश्वर की आज्ञा को मानना, मिच्छं परिहरह धरह सम्मतं। मिच्-छम् परि-हर-हधरह सम्-मत्-तम्। मिथ्यात्व का त्याग करना,सम्यक्त्व को धारण करना, छव्विह-आवस्सयम्मि, छव-विह-आवस्-सयम्-मि, छह प्रकार के आवश्यकों में उज्जुत्तो होइ पइदिवसं ॥१॥ उज्-जुत्-तो होइ पइ-दिव-सम् ॥१॥ प्रतिदिन उद्यमी होना । १. गाथार्थ : १. श्री जिनेश्वर भगवंत की आज्ञा को मानना २. मिथ्यात्व का त्याग करना; ३. सम्यकत्व को धारण करना; (४ से ९) छह प्रकार के आवश्यक में प्रतिदिन उद्यमी होना । १. पव्वेसु पोसह-वयं, प-वेसु पोस-ह-वयम्, पर्व दिनों में पौषधव्रत करना, दाणं सीलं तवो अभावो अदाणम् सीलम्-तवो अभावो अ। और दान देना, शीयल पालना, तप करना और उत्तम भावना रखना। सज्झाय-नमुक्कारो, सज्-झाय नमुक्-कारो, स्वाध्याय करना, नवकार मंत्र का जाप करना परोवयारो अजयणा अ॥२॥परो-वया-रो अजय-णा अ॥२॥ और परोपकार करना और जयणा का पालन करना। २. गाथार्थ : १०. पर्वतिथि में पौषध करना; ११. दान देना; १२. शीयल पालना; १३. तप करना और १४. उत्तम भावना रखना; १५. स्वाध्याय करना; १६. श्री नवकार मंत्र का जाप करना; १७. परोपकार करना और १८. जयणा का पालन करना । २. जिण-पूआ जिण-थुणणं, जिण-पूआ जिण-थुण-णम्, जिनेश्वर की पूजा करना, जिनेश्वर की स्तुति करना, गुरुथुअ साहम्मिआणगुरु-थुअ साहम्-मि-आण गुरु की स्तुति करना, साधर्मिक के प्रति वच्छल्लं। वच-छल्-लम्। वात्सल्य रखना ववहारस्स य सुद्धि, वव-हारस्-स य सुद्-धि, और व्यवहार शुद्धि रखना, रह-जत्ता तित्थ-जत्ता य॥३॥ रह-जत्-ता तित्-थ-जत्-ता य॥३॥ रथ यात्रा और तीर्थ यात्रा करना।३. गाथार्थ : १९. जिनेश्वर की पूजा; २०. जिनेश्वर की स्तुति; २१. गुरु भगवंत की स्तुति; २२. सार्मिक के प्रति वात्सल्य; २३. व्यवहार में शुद्धि रखना; २४. रथयात्रा और २५. तीर्थ यात्रा करना । ३. उवसम-विवेग-संवर, उव-सम-विवे-ग-सर्वं (सम्)-वर, उपशांत रहना, विवेक रखना, संवर करना भासा-समिई, भासा-समि-ई, भाषा समिति रखना और छह छ जीव-करुणा य। छ-जीव-करुणा य। कायो के जीवों के प्रति करूणा रखना, धम्मिअ-जण-संसग्गो, धम्-मिअ-जण-सन्-सग्-गो, धार्मिक जनों के संसर्ग में रहना, करण-दमो चरणकरण-दमो चरण इंद्रियों का दमन करना, चारित्र ग्रहण करने की परिणामो॥४॥ परि-णामो॥४॥ भावना रखना। ४. गाथार्थ: २६. उपशांत रहना; २७. विवेक रखना; २८. संवर करना; २९. भाषा समिति का पालन; ३०. छह काय जीवों के प्रति दया; ३१.धार्मिक जनों के संसर्ग में रहना; ३२. इन्द्रियों का दमन करना, ३३. चारित्र (संयम )ग्रहण करने की भावना रखना। ४. २०३ E Only International

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