Book Title: Avashyaka Kriya Sadhna
Author(s): Ramyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
Publisher: Mokshpath Prakashan Ahmedabad

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Page 263
________________ JIOAMAAVAT ॐ पुत्र-मित्र-भ्रातृ-कलत्र- ओम्-पुत्र-मित्र-भ्रातृ-कल-त्र ॐ पुत्र, हितेच्छु, सदोहर (भाई), स्त्री, सुहृत्-स्वजन-संबन्धिसु-हृत्-स्व-जन-सम्-बन्-धि मित्र, ज्ञातिजन, सगे बंधु-वर्ग-सहिता-नित्यं- बन्-धु-वर-ग सहि-ता-नित्-यम् स्वगोत्रीय स्नेहीजन, हमेशा (नित्य) चामोद-प्रमोद-कारिण:- चामो-द-प्रमो-द-कारि-ण: आमोद-प्रमोद करनेवाले हों। अस्मिश्च-भूमण्डलअस्-मिन्-श्च भूमण-डल इस पृथ्वी पर अपने अपने आयतन-निवासि साधु-साध्वी- आय-तन-निवा-सि साधु-साधू-वी स्थान पर विराजित-साधु-साध्वीजीश्रावक-श्राविकाणां, श्राव-क-श्रावि-काणाम् श्रावक-श्राविकाओं के रोगोपसर्ग-व्याधि-दुःख- रोगोप-सर्ग-व्याधि-दुःख रोग-उपसर्ग-व्याधि-दुःख, दुर्भिक्ष-दौर्मनस्यो-पशमनाय दुर-भिक्-ष-दौर-म-नस्-यो-पश-म-नाय- दुष्काल और विषाद के उपशमन द्वारा शान्ति-र्भवतु ॥१०॥ शान्-तिर्-भ-वतु ॥१०॥ शान्ति हो । १०. अर्थ : ॐ आप पुत्र (पुत्री), मित्र,भाई, (बहन) स्त्री, हितैषी, स्वजातीय, स्नेहिजन और सम्बन्धी परिवारवालों के सहित आनन्द-प्रमोद करनेवाले हों और इस भूमण्डल पर अपने अपने स्थान पर रहे हुए साधु, साध्वी, श्रावक-श्राविकाओं के रोग, उपसर्ग, व्याधि, दुःख, दुष्काल, और विषाद के उपशमन द्वारा शान्ति हो । १०.. ॐ तुष्टि-पुष्टि-ऋद्धि-वृद्धि ओम् तष-टि-पुष-टि-ऋद्-धि वद्-धि- ॐ तुष्टि, पुष्टि, ऋद्धि, वंशवृद्धि, माङ्गल्योत्सवाः सदामाङ्-गल्-योत्-सवाः-सदा कल्याणकारी उत्सव सदा के लिए प्रादुर्भूतानिप्रादुर्-भू-तानि उदय में आते पापानि शाम्यन्तु, दुरितानि, पापा-नि शाम्-यन्-तु, दुरि-तानि, पापकर्म शान्त-नष्ट हों, शत्रवः पराङ्मुखा भवन्तु-स्वाहा ॥११॥ शत्र-वः पराङ्-मुखा भ-वन्-तु-स्वाहा ॥११॥ शत्रुवर्ग विमुख बनें । स्वाहा । ११. अर्थ : ॐ आपको सदा तुष्टि हो, पुष्टि हो, ऋद्धि मिले, माङ्गल्य की प्राप्ति हो और आपका निरन्तर अभ्युदय हो । आपके प्रादुर्भूत पापकर्म नष्ट हों, भय-कठिनाईयाँ शान्त हों और आपके शत्रुवर्ग विमुख बनें । स्वाहा । ११. छंद : अनुष्टुप्; राग : दर्शनं देवदेवस्य... ( प्रभुस्तुति) श्रीमते शान्तिनाथाय, श्री-मते शान्-ति-नाथा-य, श्री शान्तिनाथ भगवंत कोनमः शान्ति-विधायिने। नमः शान्-ति-विधा-यिने । नमस्कार हो, शान्ति करनेवाले, त्रैलोक्यस्या-मराधीशत्रै-लोक-य-स्या-मरा-धीश तीनलोक के प्राणियों को, देवेन्द्रों केमुकुटाभ्य-चिंताघ्रये ॥१२॥ मुकु-टा-भ्यर-चिताङ्-घ्रये ॥१२॥ मुकुटों से पूजित चरणवाले । १२. अर्थ : तीन लोक के प्राणियों को शान्ति करनेवाले और देवेन्द्रों के मुकुटों से पूजित चरण वाले, पूज्य श्री शान्तिनाथ भगवंत को नमस्कार हो । १२. शान्तिः शान्तिकरः श्रीमान, शान्-तिः शान्-ति-करः श्री-मान्-, शान्तिनाथजी, शान्ति करनेवाले, श्रीमान्शान्ति दिशतु मे गुरुः। शान्-तिम् दि-शतु मे गुरुः। शान्ति को दीजीए, मुझे गुरु, शान्तिरेव सदा तेषां, शान्-ति-रेव सदा तेषाम्, शान्ति ही सदा उन्हें होती है, येषां शान्ति-गुहे गृहे ॥१३॥ येषाम्-शान्-तिर-गृहे गृहे ॥१३॥ जिनके घर-घर में होती है। १३. अर्थ : जगत में शान्ति करने-वाले, जगत को धर्म का उपदेश देने-वाले, पूज्य शान्तिनाथ भगवंत मुझे शान्ति प्रदान करें। जिनके घर घर में श्री शान्तिनाथ की पूजा होती है उनके (यहाँ) सदा शान्ति ही होती है। १३. उन्मृष्ट-रिष्ट-दुष्ट-ग्रह-गति- उन्-मृष्-ट-रिष्-ट-दुष्-ट-ग्रह-गति- दूर किये हैं उपद्रव जिन्होंने, दुष्ट ऐसे-ग्रह की गतिदुःस्वप्न-दुनिमित्तादि। दुः-स्वप्-न-दुर्-नि-मित्-तादि । दुष्ट स्वप्न, दुष्ट निमित्त आदि का नाश करनेवाला सम्पादित-हित-सम्पन्- सम्-पा-दित-हित-सम्-पन् आत्महित और संपत्ति को प्राप्त करनेवाला, नाम-ग्रहणं जयति नाम-ग्रह-णम् जय-ति नामोच्चार जय को प्राप्त होता है, शान्तेः ॥१४॥ शान्-तेः ॥१४॥ श्री शान्तिनाथ भगवंत का ।१४. अर्थ : उपद्रव, ग्रहों की दुष्टगति, दुःस्वप्न, दुष्ट अङ्गस्फुरण और दुष्ट निमित्तादि का नाश करने वाला तथा आत्महित और सम्पत्ति को प्राप्त कराने-वाला श्री शान्तिनाथ भगवंत का नामोच्चार जय को प्राप्त होता है।१४. २७० Jail Educan international er & Personal use Culty www.jainelimary.org

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