Book Title: Avashyaka Kriya Sadhna
Author(s): Ramyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
Publisher: Mokshpath Prakashan Ahmedabad
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प्रातपय
असूझतुं दान दीधुं । देवानी बुद्धिए असूझतुं फेडी सूजतुं वैयावच्च न कीधुं । वाचना, पृच्छना, परावर्तना, अनुप्रेक्षा, धर्मकथा कीधुं, परायुं फेडी आपणुंकीर्छ । अण देवानी बुद्धिए सूझतुं लक्षण पंचविध स्वाध्याय न कीधो । धर्मध्यान, शुक्लध्यान न फेडी असूझतुं कीg, आपणुं फेडी परायुं कीधुं। वहोरवा वेला ध्यायां,,आर्तध्यान, रौद्रध्यान ध्यायां । कर्मक्षय निमित्ते लोगस्स दश टली रह्या ।असूर करी महात्मा तेड्या । मत्सर धरी दान दीधुं। वीशनो काउस्सग्ग न कीधो ॥ अभ्यंतर तप विषइओ अनेरो जे कोई गुणवंत आव्ये भक्ति न साचवी।छती शक्तिए स्वामीवात्सल्य अतिचारपक्ष दिवस मांहि... ॥१५॥ न कीर्छ । अनेरां धर्मक्षेत्र सीदातां छती शक्तिए उद्धर्यां नहीं। वीर्याचारना त्रण अतिचार॥ दीन क्षीण प्रत्ये अनुकंपा दान न दीर्छ।
अणिगूहिअ-बलविरिओ ! पढ़वे, गुणवे, विनय, वैयावच्च, बारमे अतिथि संविभाग व्रत विषइओ अनेरो जे काई देवपूजा, सामायिक, पोसह, दान, शील, तप, भावनादिक धर्म अतिचारपक्षदिवसमांहि... ॥१२॥
कृत्यने विषे मन वचन कायातणुंछतुं बल, छतुं वीर्य गोपव्युं । रूडां संलेषणा तणा पांच अतिचार।
पंचांग खमासमण न दीधां । वांदणा तणां आवर्त्त विधि साचव्या नहीं इहलोए परलोए ॥ इहलोगासंप्पओगे, परलोगा- अन्य चित्त निरादरपणे बेठा । उतावळु देववंदन, पडिक्कमणुंकीर्छ । संसप्पओगे, मरणा-संसप्पओगे, कामभोगा-संसप्पओगे, वीर्याचारविषइओ अनेरो जे कोई अतिचारपक्ष दिवस मांहि... ॥१६॥ इहलोके धर्मना प्रभाव लगे राजऋद्धि, सुख, सौभाग्य, नाणाइअट्ठपइवय-सम्मसंलेहणपण पन्नरकम्मेसु। परिवारवांछ्यां। परलोके देव देवेन्द्र, विद्याधर, चक्रवर्ती तणी बारस तप विरिअतिगं,चउव्वीससयं अडयारो॥१॥ पदवी वांछी, सुख आव्ये जीवितव्य-वांछ्युं, दुःख आव्ये पडिसिद्धाणं करणे॥ मरण वांछ्यं । कामभोग तणी वांछा कीधी ॥ संलेषणा व्रत प्रतिषेध अभक्ष्य, अनंतकाय, बहुबीज-भक्षण, महारंभविषड़ओ अनेरोजे कोई अतिचारपक्ष दिवस मांहि...॥१३॥ परिग्रहादिक कीधां । जीवाजीवादिक सूक्ष्म विचार सद्दह्या नहीं।
तपाचार बार भेद-छ बाह्य, छ अभ्यंतर ॥ अणसण- आपणी कुमतिलगे उत्सूत्र-प्ररूपणा कीधी । तथा प्राणातिपात, मणोअरिया॥अणसण भणी उपवास विशेष पर्वतिथिए छती मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, शक्तिए कीधो नहीं । ऊणोदरी व्रत ते कोळिया पांच सात ऊणा द्वेष, कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य, रति-अरति, परपरिवाद, रह्या नहीं। वृत्तिसंक्षेप ते द्रव्य भणी सर्व वस्तुनो संक्षेप कीधो मायामृषावाद, मिथ्यात्वशल्य ए अढार पापस्थान कीधां, कराव्यां नहीं । रसत्याग ते विगइत्याग न कीधो । कायक्लेश ते अनुमोद्यां होय । दिनकृत्य-प्रतिक्रमण, विनय,वैयावच्च न कीधां । लोचादिक कष्ट सहन कर्यां नहीं । संलीनता-ते अंगोपाग अनेरुंजे कांई वीतरागनी आज्ञा विरुद्ध कीर्छ,कराव्यं, अनुमोद्यं होय संकोची राख्या नहीं। पच्चक्खाण भांग्यां । पाटलो डगडगतो ॥ ए चिहुं प्रकार मांहे अनेरो जे कोई अतिचार पक्ष दिवस मांहि, सूक्ष्म फेड्यो नहीं। गंठसी, पोरिसि, साड्डपोरिसि, पुरिमड्डू, एकासगुं, बादरजाणतां अजाणतां हुओ होय ते सवि हुमन-वचन-कायाए करी बिआसणुंनीवि।आंबिल प्रमुख पच्चक्खाण पारदुं विसायें। मिच्छा मि दुक्कडं ॥१७॥ बेसतां नवकार न भण्यो। उठतां पच्चक्खाण करवू विसायं। एवंकारे श्रावकतणे धर्मे श्री सम्यकत्व मूल बार व्रत एक सो गंठसियुं भांग्युं । नीवि, आंबिल उपवासादि तप करी काचुं चोवीश अतिचार मांहि अनेरोजे कोई अतिचार पक्ष दिवस मांहि सूक्ष्म पाणी पीधुं । वमन हुओ । बाह्य तप विषईओ अनेरो जे कोई बादर जाणतां अजाणतां हुओ ते सवि हु मन-वचन-कायाए करी अतिचारपक्ष... ॥१४॥
मिच्छा मि दुक्कडं। ____ अभ्यंतर तप, पायच्छित्तं विणओ ॥ मन शुद्धे गुरु कन्हे नोंघ : चोमासी प्रतिक्रमण में 'चउमासी-दिवसमांहि' और आलोअणा लीधी नहीं । गुरुदत्त प्रायश्चित तप लेखा शुद्धे संवच्छरी प्रतिक्रमण में 'संवच्छरी दिवसमांहि' समस्त अतिचार में पहुंचाड्यो नहीं । देव, गुरु, संघ, साहम्मीअ प्रत्ये विनय बोलने का ध्यान रखें। साचव्यो नहीं । बाल, वृद्ध, ग्लान, तपस्वी, प्रमुखनु इति श्री श्रावक पक्खी, चोमासी, संवच्छरी अतिचार समाप्त
अतिचार में प्रयुक्त होनेवाले कठिन शब्दों के सरल अर्थ ज्ञानाचारे
प्रज्ञापराधे = तुच्छ बुद्धि के कारण निवेदीआ = नैवेद्य अणउद्धर्ये = निकाले बिना विणाश्यो = नष्ट किया
ठवणारिय = स्थापनाचार्य कवली = पन्नों की रक्षा के साधन उवेख्यो = उपेक्षा किया
पडिवज्युं = अंगीकार किया दस्तरी = दोनों ओर के आवरण हस्यो = उपहास किया
चारित्राचारे वही = बही खाता
अन्यथा = सूत्र के विपरीत तृण = घास ओलिया = कागज के ऊपर रेखा
दर्शनाचारे
डगल = अचित्त मिट्टी के ढेले खींचने का साधन अधोती = धोती के अतिरिक्त श्लेष्मादिक = थूक, खखार आदि ओशीसे = तकिया
सिले हुए वस्त्र जीवाफूल = अनेक जीवजन्तु से युक्त निहार = दस्त
केलि = खेल
सावध = पापयुक्त
Socation Intematonal
Im
a mersarmer

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