Book Title: Avashyaka Kriya Sadhna
Author(s): Ramyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
Publisher: Mokshpath Prakashan Ahmedabad

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Page 219
________________ रिसिदत्ता (१२) ऋषिदत्ता : हरिषेण तापस की अत्यंत सौंदर्यवती पुत्री तथा कनकरथ राजा की धर्मपत्नी । कर्मोदय के कारण सुलसा योगिनी द्वारा डाकिन का कलंक लगाया गया था, जिसके कारण अनेक कष्ट सहन करने पड़े । परन्तु प्रभुभक्ति तथा शीलधर्म के प्रभाव से सारे संकटों से पार उतर गई । आखिर संयम धारण कर सिद्धिपद पाया । सिरिदेवी (१५) श्रीदेवी : श्रीधर राजा की परम शीलवती स्त्री । विद्याधरों ने तथा देवों ने उसका अपहरण कर शील से डिगाने की बहुत कोशिश की, परन्तु वह पर्वत के समान निश्चल रही । अन्त में चारित्र | लेकरपांचवें देवलोक में गई । मिगावडी २१८ in Education International पडमावई : (१३) पद्मावती बेडा राजा की पुत्री तथा चंपापुरी के दधिवाहन राजा की धर्मपत्नी । सगर्भावस्था में 'हाथी के हौदे पर बैठकर राजा से छत्र धारण करवा कर स्वयं वनविहार करे' ऐसी भविष्यवाणी होने पर उसे पूर्ण करने की व्यवस्था हुई, परन्तु जंगल देखकर हाथी भाग गया और राजा एक वृक्ष की डाल पकड़कर लटक गया। परन्तु रानी ऐसा नहीं कर सकी । अन्त में हाथी पानी पीने के लिए खड़ा रहा, उसी समय वह उतरकर तापस के आश्रम में गई । वहाँ साध्वीजी का परिचय होते ही गर्भ की बात बतलाए बिना दीक्षा ले ली। बाद में गुप्त रूप से बालक को जन्म देकर स्मशान में रख दिया, जो प्रत्येकबुद्ध करकंडू बने। एक बार पिता-पुत्र के बीच हो रहे युद्ध में वहां जाकर सच्ची जानकारी देकर युद्ध को रुकवाया । निर्मल चारित्र का पालन कर अंत में आत्मकल्याण को साधा । जिल (१६) ज्येष्ठा : चेडा राजा की पुत्री, प्रभुवीर के बड़े भाई नंदिवर्धन राजा की धर्मपत्नी प्रभु वीर की बारह व्रतधारी श्राविका, इसके अडिग शील की शक्रेन्द्र के द्वारा प्रशंसा किए जाने पर एक देव ने बहुत ही भयंकर परीक्षा ली। परन्तु सफलता से पार उतरने के बाद महासती के रूप में घोषित की गई। दीक्षा लेकर कर्मो का क्षय कर शिवपुर (मोक्ष) में गई । अंजणा or Privics Personal Only (१४) अंजनासुंदरी : राजा महेन्द्र तथा हृदयसुंदरी रानी की पुत्री, पवनंजय की धर्मपत्नी । छोटी सी बात को बड़ा रूप देकर विवाह के २२ वर्षों तक पवनंजय से दूर रही। फिर भी अखंड शील का पालन किया तथा धर्मध्यान किया । युद्ध में गया हुआ पति चक्रवाक मिथुन की विरह व्याकुलता देखकर गुप्त रूप से अंजना के पास आए । परन्तु इस मिलन का परिणाम अत्यन्त कष्टकर हुआ । गर्भवती होते ही उसे कलंकिनी घोषित कर दी गई ! सास-ससुर ने पिता के घर भेज दिया । वहाँ से भी वन में भेज दी गई। वन में तेजस्वी पुत्र 'हनुमान' को जन्म दिया । शीलपालन में अडिग सती को ढूंढने निकले हुए पति को वर्षों बाद काफी प्रयास से मिलन हुआ । आखिर दोनों ने चारित्र लेकर मुक्तिपद पाया । सवित (१७) सुज्येष्ठा : चेडा राजा की पुत्री संकेत के अनुसार श्रेणिक राजा भूल से उसकी बहन चळणा को लेकर जाने लगा । इससे वैराग्य पाकर श्री चंदनबाला के पास दीक्षा ली । एक बार घर की छत पर धूप का सेवन करते हुए उसके रूप पर मोहित पेढाल विद्याधर ने भ्रमर का रूप धारण कर योनि में प्रवेश करने के कारण उसे गर्भ ठहर गया । परन्तु ज्ञानी महात्मा ने सत्य बतलाकर शंका दूर की तीव्र तपश्चर्या कर कर्मों का क्षय करके मोक्ष में गई । | (१८) मृगावती : चेडा राजा की पुत्री तथा कौशांबी के राजा शतानीक की धर्मपत्नी । रूपलुब्ध चंडप्रद्योत ने युद्ध हेतु चढ़ाई की। उसी रात शतानीक अपस्मार के रोग से मृत्यु पाए भोग की आशा से चंडप्रद्योत ने उसके पास ही किला बनवाना शुरु किया । | मृगावती ने अनाज पानी भराकर किले का द्वार बंद कराकर प्रभुवीर की प्रतीक्षा करने लगी। प्रभु के पधारते ही दरवाजा खुलवाकर देशना सुनकर वैराग्य प्राप्त कर दीक्षा ग्रहण | की। एक बार सूर्य-चंद्र मूल विमान में प्रभुजी के दर्शन करने के लिए आए तब प्रकाश के कारण रात्रि का ख्याल न होने के कारण उपाश्रय में आने में विलम्ब होने पर, आर्या | चंदनबाला के द्वारा डांटे जाने के बाद पश्चात्ताप करते हुए केवलज्ञान प्राप्त किया । www.atelibrary.org

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