Book Title: Avashyaka Kriya Sadhna
Author(s): Ramyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
Publisher: Mokshpath Prakashan Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 239
________________ छंद : स्रग्धरा; राग : 'आमूला-लोल-धूली...' (संसारदावानल. सूत्र, गाथा-४) अर्हद्वक्त्र-प्रसूतंअर-हद्-वक्-त्र-प्रसू-तम् अरिहंत के मुख से अर्थ रुप में प्रगटित (और) गणधर-रचितंगण-धर-रचि-तम् गणधरों द्वारा सूत्ररुप में गुथे हुए द्वादशाङ्ग विशालं, द्वा (द्वा)-द-शाङ्-गम् विशा-लम्, बारह अङ्गोंवाले, विस्तृत अद्भुत रचना शैली वाले, चित्रं बह्वर्थ-युक्तं मुनिगण- चित्रम्-बह-वर्-थ-युक्-तम् मुनि-गण- बहुत अर्थो से युक्त, विधि विधान ऐसे श्रेष्ठ मुनि वृषभै-र्धारितं बुद्धिमद्भिः । वृष-भैर-धारि-तम्-बुद्-धि-मद्-भिः। के समूह से धारण किये हुए, मोक्षाग्र-द्वारभूतं व्रत-चरण-मोक्-षा-ग्र द्-वार-भू-तम् व्रत-चर-ण- मोक्ष के द्वार समान, व्रत और चारित्र रुप फलवाले फलं-ज्ञेय-भाव-प्रदीपं, फलम्-ज्ञेय-भाव-प्रदी-पम्, जानने योग्य पदार्थो को प्रकाशित करने में दीपक समान भक्त्या नित्यं प्रपद्ये- भक-त्या नित्-यम् प्र-पद्ये (पद्-ये)- भक्तिपूर्वक अहर्निश स्वीकारता हूँ। श्रुत-मह-मखिलं- | श्रुत-मह-मखि-लम् श्रुत को मैं समस्त (और) सर्वलोकैक-सारम् ॥३॥ सर्-व-लोकै-क-सारम् ॥३॥ समस्त विश्व में अद्वितीय सारभूत ऐसे । ३. अर्थ : श्री जिनेश्वरदेव के मुख से अर्थरूप में प्रगटित और गणधरों द्वारा सूत्ररूप में गुथे हुए, बारह अङ्गोंवाले, विस्तृत, अद्भुत रचनाशैली वाले, बहुत अर्थो से युक्त, विधिविधान ऐसे श्रेष्ठ मुनि-समूह से धारण किये हुए, मोक्ष के द्वार समान, व्रत और चारित्ररूप फलवाले, जानने योग्य पदार्थों को प्रकाशित करने में दीपक समान ओर समस्त विश्व में अद्वितीय सारभूत ऐसे समस्त श्रुत का मैं भक्तिपूर्वक अहर्निश आश्रय ग्रहण करता हूँ। ३. निष्यङ्क-व्योम-नील- निष्-पङ्-क-व्यो-म-नी-ल बादल रहित स्वच्छ आकाश की नीलद्युति-मल-सदृशंधु (यु) ति-मल-सद्-रु-शम्- प्रभा को धारण करनेवाले, आलस्य से मन्द (मद्-पूर्ण) दष्टिवाले, बालचन्द्रा-भदंष्ट्र बाल-चन्-द्रा-भ-दन्-ष्ट्रम्, द्वितीया (दूज) के चन्द्र की कांति की तरह उज्ज्वल दाढोंवालें, मत्तं घण्टारवेण प्रसृत- मत्-तम् घण्-टार-वेण-प्रसृ-त- गले में बंधी हुई घण्टियों के नाद से मत्त, झरते हुए मदजलं पूरयन्तं समन्तात् । मद-जलम्-पूर-यन्-तम् समन्-तात्। मदजल को चारो ओर फैलाते हुए, ऐसे आरूढो दिव्यनागं विचरति- | आरू-ढो दिव-य-नागम् विच-रति- विराजित दिव्य हाथी पर विचरते गगने-कामदः कामरूपी, गग-ने-काम-दः-काम-रूपी, आकाश मार्ग पर मनोकामनाओं को पूर्ण करनेवाले (और) इच्छित रुप को धारण करनेवाले यक्षः सर्वानुभूति-र्दिशतु मम- यक्षः सर्-वानु-भूतिर-दिश-तु मम- यक्ष सर्वानुभूति दीजिए मुझे सदा सर्वकार्येषु सिद्धिम् ॥४॥ सदा-सर-व-कार-येषु सिद्-धिम् ॥४॥ सदा सर्व कार्यो में सिद्धि को । ४. अशुद्ध शुद्ध अशुद्ध अर्थ : बादल-रहित स्वच्छ आकाश की नील-प्रभा विस्मयाहूतरस विस्मयाहृतरस नित्यं प्रपध्ये नित्यं प्रपद्ये को धारण करनेवाले आलस्य से मन्द (मदपूर्ण) पस्पर्द्धिभि पस्पर्द्धिभिः दुतिमलसद्रशं यतिमलसदशं दृष्टिवाले, द्वितीया के चन्द्र की तरह उज्ज्वल उन्मष्टं उन्मृष्टं बालचन्द्रभदष्ट्र बालचन्द्राभदंष्टं दाढोंवाले,गले में बधी हुई घण्टियों के नाद से मत्त. गणै तेषां गणैस्तेषां मन्तं घंटारवेण मत्तं घंटावेण झरते हुए मदजल को चारों ओर फैलाते हुए ऐसे वक्रं यस्य वक्त्रं यस्य क्षी-राणवांभोभत क्षीरार्ण-वांभो-भः प्रसूतमदजलं प्रसृतमदजलं दिव्य हाथी पर विराजित मनोकामनाओं को पर्ण वृषभैद्वारितं : वषभै-र्धारितं वृषभै-र्धारितं ... सर्वानुभूति दिशतु सर्वानुभूतिर्दिशत करनेवाले, इच्छित रूप को धारण करनेवाले और आकाश में विचरण करनेवाले सर्वानुभूति यक्ष मुझे सर्व कार्यो में सिद्धि प्रदान करें। ४. MR.Kation intemalond For Philame d ital sayww.janorycore

Loading...

Page Navigation
1 ... 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274