Book Title: Avashyaka Kriya Sadhna
Author(s): Ramyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
Publisher: Mokshpath Prakashan Ahmedabad

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Page 228
________________ प्रश्न १०. चार खमासमण में भगवान्हं आदि का क्या अर्थ है ? उत्तर: 'भगवान्हं' का अर्थ 'अरिहंत तथा सिद्धभगवंत', 'आचार्यहं' का अर्थ 'आचार्य भगवंत', 'उपाध्यायहं' का अर्थ 'उपाध्याय भगवंत' तथा 'सर्वसाधुहं' का अर्थ 'सर्व साधुभगवंत' को नमस्कार हो, ऐसा होता है। प्रश्न ११. 'सव्वस्स वि देवसिअ' सूत्र को प्रतिक्रमण का बीज सूत्र क्यों कहा जाता है? .उत्तर: मन से दुश्चिंता की, वचन के दुर्भाषण की तथा काया से दुष्ट चेष्टा की आलोचना, इस लघुसूत्र के द्वारा की गई है तथा इसका विस्तार ही प्रतिक्रमण की क्रिया में आता है। इसीलिए इस संक्षिप्त सूत्र को बीजसूत्र कहा जाता है। प्रश्न १२. पाँच आचारों में सबसे पहले चारित्राचार की शुद्धि के लिए आठ गाथाओं का काउस्सग्ग किया जाता है ? उत्तर: मुक्ति का महत्त्वपूर्ण कारण तथा पाच आचारों में सर्वप्रधान तथा सर्वश्रेष्ठ होने के कारण दिन से सम्बन्धित लगे हुए दोषों में सबसे पहले चारित्राचार की शुद्धि हेतु आठ गाथों का काउस्सग्ग किया जाता है । पूज्य महात्माओं के साधुजीवन को अनुलक्ष्य कर 'सयणा...' की एक गाथा का एक बार चिंतन किया जाता है । पंचाचार की गाथा का चिंतन करते समय श्रावक अपने पर लगे हुए अतिचारों को और पू. महात्माओं को अपने पर लगे हुए अतिचारों का एक गाथा का चिंतन करते समय छोटे से बड़े के क्रम में व्यवस्थित करना चाहिए। प्रश्न १३. यहां पर तीसरे आवश्यक वांदणा देने का हेतु क्या है? उत्तर: बत्तीस दोष रहित और पच्चीस आवश्यक सहित वांदणा पूज्य गरुभगवंत को कायोत्सर्ग में छोटे-बडे के क्रम में व्यवस्थित चिंतित कर अतिचारों का निवेदन करने से पहले विनय-बहुमान हेतु दिया जाता है। प्रश्न १४. 'सव्वस्स वि देवसिअ... इच्छाकारेण...' सूत्र बोलने का हेतु क्या है? उत्तरः इस सूत्र में दिन संबन्धी मन-वचन-और काया के सर्व अतिचारों का संग्रह होने से पूज्य गुरुभगवंत के पास प्रायश्चित मांगा जाता है। पूज्य गुरुभगवंत 'पडिक्कमेह' बोलने से उन अतिचारों के प्रायश्चित स्वरुप प्रतिक्रमण करने को कहते हैं । तब शिष्य 'इच्छं, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं' कहता है । फिर १० प्रकार के प्रायश्चित में प्रतिक्रमण नाम का दूसरा प्रायश्चित करने के लिए योगमुद्रा पूर्वक गोदोहिका आसन (वीरासन ) मैं बैठकर, समभाव मे रहकर, उपयोग के साथ पद-पद में संवेग की प्राप्ति करते हुए, डांस-मच्छर आदि के दंश परिषह को सहन करते पूज्य महात्माओ पगामसज्जाय' सूत्र और श्रावक-श्राविका गण 'श्री वंदित्तु' सूत्र बोलें। प्रश्न १५. पूज्य महात्मा श्रमण सूत्र' बोलने से पहले 'श्री नवकार मंत्र, करेमि भंते !, चत्तारि-मंगलं, इच्छामि पडिक्कमिउं और ईरियावहियं' सूत्र किसलिए बोलते हैं? उत्तर : श्री पंच परमेष्ठि भगवंतों को नमस्कार करके सभी कार्य करने चाहिए, इसलिए प्रारंभ में 'श्री नवकार मंत्र' बोलते हैं । समता भाव में स्थिर होकर प्रतिक्रमण करना चाहिए, इसलिए 'करेमि भंते !" सूत्र बोलते हैं। फिर मांगलिक के लिए 'चत्तारि मंगलं' बोलते हैं । उसके बाद दिन सम्बन्धी अतिचार की आलोचना करने के लिए 'इच्छामि पडिक्कमिउं..' सूत्र बोलते हैं । मार्ग में आने-जाने से हुई विराधना की आलोचना के लिए 'ईरियावहियं' सूत्र बोलते हैं । फिर समस्त अतिचारों से पीछे मुडने के लिए 'श्रमण सूत्र' बोलते हैं । इसी हेतु के लिए श्रावक-श्राविकागण भी 'श्री नवकार मंत्र, करेमि भंते ! और इच्छामि पडिक्कमिउं' सूत्र बोलने के बाद 'श्री वंदित्तु सूत्र' बोलते हैं। प्रश्न १६ श्रमण सूत्र तथा वंदित्तु सूत्र में 'अब्भुट्ठिओमि आराहणाए' बोलने के साथ ही शेष सूत्र खड़े-खड़े क्यों बोला जाता है? उत्तर: अतिचार रूप पापों के भार से हल्का होने के लिए खड़ा होकर शेष सूत्र बोला जाता है। अथवा द्रव्य (शरीर) से खड़े होकर भाव से आराधना करने के लिए खड़ा हुआ हूं, यह सूचित करने के लिए भी बोला जाता है । यह चौथे प्रतिक्रमण आवश्यक से चार प्रकार के कर्म दूर होते हैं । ('अब्भुट्ठिओ मि' बोलने के साथ ही खड़े होकर गुरुभगवंत के अवग्रह से बाहर निकलकर शेष सूत्र बोलना चाहिए।) प्रश्न १७. श्रमण सूत्र तथा वंदित्तु सूत्र के बाद तुरन्त दो वांदणां किसलिए दिया जाता उत्तर: वंदन आठ कारणों से किया जाता है। १. प्रतिक्रमण, २. स्वाध्याय, ३. काउस्सग्ग करना, ४. अपराध की क्षमापना, ५. अतिथि साधु आए तब, २३१ - FEEdse only Home

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