Book Title: Avashyaka Kriya Sadhna
Author(s): Ramyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
Publisher: Mokshpath Prakashan Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 211
________________ केशीस्वामी सुकोसल (१५) सुकोशलमुनि : अयोध्या के कीर्तिधर राजा तथा सहदेवी रानी के पुत्र । पिता के बाद सकोशल भी दीक्षा लेने के कारण वियोग आर्तध्यान में मृत्यु को प्राप्त कर सहदेवी जंगल में बाघिन बनी । एक बार सूकोशल उसी जंगल में जाकर कायोत्सर्ग ध्यान में खड़े थे, तभी उसी बाघिन ने आकर हमला किया और उसका शरीर फाड़ डाला । उपसर्ग को अपूर्व समता से सहन करते हुए अंतकृत् केवली होकर सुकोशल मुनि ने मोक्ष को प्राप्त किया। (१६) पुंडरीक: ਕੇਸ पिता के साथ दीक्षा लेने की भावना होते हुए भी छोटे भाई कंडरीककी तीव्र भावना गौतमस्वामी देखकर उसे दीक्षा की सहमति प्रदान की तथा स्वयं वैराग्यपूर्वक राज्य का पालन किया। एक हजार वर्षों के संयम के बाद कंडरीक मुनि रोग (१७) केशी गणधर : श्री ग्रस्त हो गए । उनका सुन्दर उपचार किया तथा पार्श्वनाथ स्वामी की परम्परा अनुपानादि से भक्तिपूर्वक उनकी सेवा की । परन्तु के इस महापुरुष ने राजसी भोगों की लालसा के कारण चारित्रभ्रष्ट महानास्तिक प्रदेशी राजा को होकर कंडरीक के घर आते ही उसे राजगद्दी सौंपी प्रतिबोध किया था तथा श्री तथा स्वयं संयम जीवन स्वीकार ग्रहण किया ।। गौतमस्वामी भगवंत के साथ गुरुभगवंत जब तक नहीं मिलें तब तक चारों प्रकार धर्मचर्चा कर पाच महाव्रत के आहार का त्याग कर विहार किया । उत्तम भाव युक्त प्रभुवीर के शासन को चारित्र का पालन कर, तीन दिनों में काल धर्म स्वीकार कर अनुक्रम से पाकर सर्वार्थसिद्ध विमान में देव हुए। सिद्धपद को प्राप्त किया। हल ल्ला सुदसण (१८) राजर्षि करकंडु : (२१) सुदर्शन शेठः अर्हद्दास तथा अर्हद्दासी माता-पिता के चंपानगरी के राजा दधिवाहन सन्तान तथा बारह व्रतधारी श्रावक थे । कपिला दासी ने जब तथा रानी पद्मावती के पुत्र । वासना पूर्ति के लिए निवेदन किया, तब 'मैं नपुंसक हूँ.' ऐसा परन्तु उन्मत्त हाथी के द्वारा (१९-२०) हल्ल-विहल्ल कहकर छिटक गए । दूसरी बार राजरानी अभया ने पौषध में जंगल में माता को छोड़ देने काउस्सग्ग स्थित सुदर्शन को दासी से कहकर वहा से उठाकर के कारण, माता ने साध्वीजी |: श्रेणिक की पत्नी लाया । और विचलित करने के अनेक प्रयत्न किए । परन्तु के पास दीक्षा लेने पर जन्म चेल्लणा के पुत्र । श्रेणिक निष्फलता मिली, तब उसके ऊपर शील-भंग का आरोप के बाद स्मशान में रख दिया के द्वारा सेचनक हाथी लगाया । बहुत पूछने पर भी खुलासा नहीं करने के कारण राजा गया तथा चांडाल के यहा की भेंट देने के कारण ने फांसी की सजा सुनाई । अपनी आराधना तथा धर्मपत्नी उसका पालन-पोषण हुआ । मनोरमा के काउस्सग्ग की आराधना के बल से शूली भी शरीर पर खुजलाहट बहुत कोणिक ने युद्ध किया। सिंहासन बन गई । एक बार प्रभुवीर के पास जाते हुए नवकार होने के कारण करकंडु नाम पितामह चेडा राजा की महामंत्र के प्रभाव से प्रतिदिन सात हत्या करनेवाले अर्जुनमाली पड़ा । अनुक्रम से कंचनपुर के || मदद से लड़ते हुए वहाँ| के शरीर से यक्ष को दूर कर उसे दीक्षा प्रदान की । अंत में वे तथा चंपापुर के राजा बने । रात्रियुद्ध किया। सेचनक महाव्रतों की आराधना करते हुए मोक्ष में गए। अतिप्रिय रूपवान तथा हाथी के खाई में गिरने बलवान सांढ की वृद्धावस्था से मर जाने के कारण को देखकर वैराग्य हुआ तथा प्रत्येकबुद्ध होकर दीक्षा | दीक्षा लेकर सर्वार्थसिद्ध लेकर मोक्ष को प्राप्त किया। विमान में देव हुए। - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - २१० e n international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274