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मुँहपत्ति तथा शरीर की प्रतिलेखना के ५० बोल का सचित्र सरल ज्ञान
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इसी तरह बाई आँखों की प्रतिलेखना करते हुए 'नील लेश्या' मन में बोलें ।
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मुंह के समान सीने के तीन विभागों में बीच में- दाहिने-बाएँ क्रमशः 'माया शल्य, नियाण शल्य, मिथ्यात्व शल्य परिहरु' बोलें ।
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२०
इसी तरह दाई आँखों की प्रतिलेखना करते हुए लेश्या परिहरु' मन में बोलें।
'कपोत
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बाएँ कन्धे को ऊपर से नीचे प्रतिलेखन करते हुए 'क्रोध' तथा दाहिने कन्धे का प्रतिलेखन करते हुए 'मान परिहरु' मन में बोलें ।
बाएँ पैर की बांई ओर, बीच में और दांई ओर चरवले की अंतिम दशी (कोर) धुटन से लेकर पैर के पंजे तक प्रतिलेखन करते हुए क्रमशः 'पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय की जयणा करुं 'बोलें ।
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आँखों के समान मुँह के भी तीन विभागों में बीच में दाहिने- बाएँ क्रमशः 'रस गारव, ऋद्धिगारव, साता गारव परिहरु' बोलें ।
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कांख में बाई ओर ऊपर से नीचे प्रतिलेखन करते हुए 'माया' तथा दाहिनी ओर प्रतिलेखन करते हुए 'लोभ परिहरु' बोलें ।
दाहिने पैर की बांई ओर, बीच में और दांई ओर चरवले की अंतिम दशी (कोर) से घुटन से लेकर पैर के पंजे तक प्रतिलेखन करते हुए क्रमश: 'वाउकाय, वनस्पतिकाय, त्रसकाय की जयणा (रक्षा) करूं' बोले ।
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