Book Title: Auppatiksutram
Author(s): Abhaydevsuri, Dronacharya, 
Publisher: Agamoday Samiti

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Page 181
________________ से जाओइमाओगामागरणयरणिगमरायहाणिखेडकब्बडमडंबदोणमुहपट्टणासमसंबाहसंनिवेसेसु इत्थियाओ भवंति, तंजहा-अंतो अंतेउरियाओ गयपइआओ मयपइआओ बालविहवाओ छड्डितल्लिताओ माइरक्खिआओ पिअरक्खिआओ भायरक्खिआओ कुलघररक्खिआओ ससुरकुलरक्खिआओ परूढण हमंसकेसकक्खरोमाओ ववगयपुप्फगंधमल्लालंकाराओ अण्हाणगसेअजल्लमलपंकपरिताविआओ ववगयहै खीरदहिणवणीअसप्पितेल्लगुललोणमहुमजमंसपरिचत्तकयाहाराओअप्पिच्छाओ अप्पारंभाओ अप्पपरिग्गमहाओ अप्पेणं आरंभेणं अप्पेणं समारभेणं अप्पेणं आरंभसमारंभेणं वित्तिं कप्पेमाणीओ अकामबंभचेर वासेणं तमेव पइसेजं णाइक्कमइ, ताओ णं इथिआओ एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणीओ बहूई वासाई | सेसं तं चेव जाव चउसद्धिं वाससहस्साई ठिई पण्णत्ता ८। | ‘से जाओ इमाओ'त्ति अथ या एता 'अंतोअंतेउरियाओत्ति अन्तः-मध्ये अन्तःपुरस्येति गम्यं, 'कुलघररक्खियाओ' ४त्ति कुलगृह-पितृगृहं 'मित्तनाइनिययसंबंधिरक्खियाओ'त्ति क्वचित् , तत्र मित्राणि पितृपत्यादीनां तासामेव वा सुहृदः एवं ज्ञातयो-मातुलादिस्वजना निजका-गोत्रीयाः सम्बन्धिनो-देवरादिरूपाः 'परूढणहकेसकक्खरोमाओ'त्ति प्ररूढावृद्धिमुपगताः विशिष्टसंस्काराभावान्नखादयो यासां तास्तथा, पाठान्तरे ‘परूढनहकेसमंसुरोमाओत्ति इह इमणि-कूर्चरोमाणि, तानि च यद्यपि स्त्रीणां न भवन्ति तथापि कासाञ्चिदल्पानि भवन्त्यपीति तब्रहणम् , 'अण्हाणगसेयजल्लमलपं-18|| कपरितावाओ' अस्नानकेन हेतुना स्वेदादिभिः परितापो यासां तास्तथा, तत्र स्वेदः-प्रस्वेदः जल्लो-रजोमानं मलः-कठि. GRa Jain Education International www.jainelibrary.org For Personal & Private Use Only

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