Book Title: Auppatiksutram
Author(s): Abhaydevsuri, Dronacharya,
Publisher: Agamoday Samiti
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औपपातिकम्
ॐॐॐॐ
विरतिफलं त्वेषां परलोकाराधकत्वमेवेति, न च ब्रह्मलोकगमनं परिव्राजकक्रियाफलमेषामेवोच्यते, अन्येषामपि मिथ्या- अम्बडा० दृशां कपिलप्रभृतीनां तस्योक्तत्वादिति १३ ॥ ३९॥
सू०४० । बहुजणे णं भंते! अण्णमण्णस्स एवमाइक्खह एवं भासइ एवं परूवेइ एवं खलु अंबडे परिव्वायए कंपि|ल्लपुरे णयरे घरसते आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ, से कहमेयं भंते! एवं?, गोयमा!, जण्णं से बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ जाव एवं परूवेइ-एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे जाव घरसए वसहि उवेइ, सच्चे णं एसमहे, अहंपि णं गोयमा! एवमाइक्खामि जाव एवं परूवेमि-एवं खलु अम्मडे परिव्वायए | जाव वसहिं उवेइ । से केणढे णं भंते ! एवं वुच्चइ-अम्मडे परिव्वायए जाव वसहिं उवेइ ?, गोयमा!, अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स पगइभद्दयाए जाव विणीयाए छटुंछठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उर्दु बाहाओ || प्रगिज्झिय २ सूराभिमुहस्स आतावणभूमीए आतावेमाणस्स सुभेणं परिणामणं पसत्थाहिं लेसाहिं विसु|ज्झमाणीहिं अन्नया कयाइ तदावरणिजाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहावूहामग्गणगवेसणं करेमाणस्स वीरियलद्धीए वेउवियलद्धीए ओहिणाणलद्धी समुप्पण्णा, तए णं से अम्मडे परिव्वायए ताए वीरियलडीए
॥९६ ॥ वेउव्वियलद्धीए ओहिणाणलडीए समुप्पण्णाए जणविम्हावणहेर्ड कंपिल्लपुरे घरसए जाव वसहि उवेइ, से | तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चई-अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे णयरे घरसए जाव वसहिं उवेइ । पहू णं भंते
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