Book Title: Auppatiksutram
Author(s): Abhaydevsuri, Dronacharya, 
Publisher: Agamoday Samiti

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Page 198
________________ अम्मडा० सू० ४० औपपा- णं अजीवा सेऽविय दिण्णे णो चेव णं अदिण्णे सेऽविय दंतहत्थपायचरुचमसपक्खालणठ्याए पिबित्तए वा तिकम् पूणो चेव णं सिणाइत्तए, अम्मडस्स कप्पइ मागहए य आढए जलस्स पडिग्गाहित्तए, सेविय वहमाणे जाव दिने नो चेव णं अदिण्णे सेविय सिणाइत्तए णो चेव णं हत्थपायचरुचमसपक्खालणठ्याए पिबित्तए वा, - ॥९७॥ अम्मडस्स णो कप्पइ अन्नउत्थिया वा अण्णउत्थियदेवयाणि वा अण्णउत्थियपरिग्गहियाणि वा चेइयाई वंदित्तए वा णमंसित्तए वा जाव पजुवासित्तए वा णण्णत्थ अरिहंते वा अरिहंतचेइयाई वा । अम्मडे णं| भंते ! परिव्वायए कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिति? कहिउववजिहिति ?, गोयमा! अम्मडे णं परिव्वायए उच्चावएहिं सीलव्वयगुणवेरमणपञ्चक्खाणपोसहोववासेहिं अप्पाणं भावेमाणे बहूई वासाई सम-|| णोवासयपरियायं पाणिहिति २त्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता सहि भत्ताई अणसणाए छे| दित्ता आलोइयपडिकते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा बंभलोए कप्पे देवत्ताए उववजिहिति, तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं दस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता, तत्थ णं अम्मडस्सवि देवस्स दस सागरोवमाइं ठिई। से णं भंते ! अम्मडे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिति कहिं उववजिहिति?, गोयमा! महाविदेहे वासे जाइंकुलाई भवंति अढाइं दित्ताइं वित्ताई विच्छिण्णविउलभवणसयणासणजाणवाहणाई बहुधणजायरूवरययाइं आओगपओगसंपउत्ताई विच्छड्डियपउरभत्तपाणाई बहुदासीदासगोमहिसगवेलगप्पभूयाई बहुजणस्स अपरिभूयाई तहप्पगारेसु कुलेसु Jain Education International www.jainelibrary.org For Personal & Private Use Only

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