Book Title: Aspect of Jainology Part 1 Lala Harjas Rai Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Parshwanath Shodhpith VaranasiPage 20
________________ यश निर्लिप्त जैनविद्या के निष्काम सेवक बाबू हरजसराय जी जैन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व 7 अन्य रूपों में यहाँ आकर बसते रहे हैं। वे अपने-अपने विचार और धर्म साथ लाते रहे हैं, किन्तु यहाँ आकर वे सभी एक-दूसरे से घुल-मिल गये। यहां का प्रभाव उनको हिन्दू बनाता रहा है। हजार वर्ष की पराधीनता के उपरान्त भी हमारी संस्कृति जीवित है, कारण यही है कि हममें आशा, सरलता, दृढ़ता, पवित्रता, कार्य क्षमता एवं अवसर के साथ अनुकूलन के गुण सदैव रहे हैं।" अपने एवं परिवार के स्वास्थ्य के सम्बन्ध में वे पहले से ही बहुत सतर्क रहते थे। अपने बाल्यकाल से ही वे सुबह-शाम नियमित प्रार्थना करते थे । प्रत्येक कार्य करने का उनका समय निश्चित होता था । वे समुचित व्यायाम आदि करते थे और अपने परिजनों को इस हेतु प्रेरित करते थे। दांतों की सुरक्षा के सम्बन्ध में उनके विचार कितने अनुकरणीय हैं। वे लिखते हैं कि "दांतों के मसूढ़ों पर कुछ जोर से अंगुली फेरा करो और ऊपर के मसूढ़ों पर उसे इस प्रकार फेरो कि वह मसूढ़ों से नीचे के दाँतों की ओर आये और नीचे के मसूढ़ों पर इस प्रकार अंगुली फेरो कि वह फेरते समय ऊपर दाँतों की तरफ जाये । जोर से अंगुली फेरने का तात्पर्य यह नहीं कि मसूढों पर अत्यधिक दबाव डाला जाय । परन्तु इतना अवश्य है कि कुछ दबाव अवश्य पड़े, जिससे मसूढ़ों के अन्दर कोई स्थान पोला पड़ने वाला हो, वह न पड़े। किन्तु यह ध्यान रखना चाहिए कि बहुत जोर से दबाने पर मसूढ़ों के वे स्थान जो दांतों को पकड़ कर रखते हैं, शक्तिहीन हो सकते हैं । अतः दांतों के लिए समचित व्यायाम करना ही उचित है। इसके लिए मसूढ़ों की मालिश करते रहना, गन्ने आदि को दांतों से छीलकर खाना आदि उपयोगी होते हैं। दांतों के संबंध में यह ध्यान रखना चाहिए कि अति गरम और बर्फ आदि अति ठंडे पदार्थ उनके लिए शत्र हैं। दातों का जीवन में कितना महत्व है, वे स्पष्ट करते हैं कि यदि मुंह में दांत नहीं हैं, तो न भोग सुखदायक होगा, न भोजन में स्वाद आयेगा, न चेहरे का सौन्दर्य हो रहेगा।" उनका यह लेखन इस बात का प्रतीक है कि वे स्वास्थ्य सम्बन्धी छोटी से छोटी बात के लिए कितने संवेदनशील थे। __ लालाजी न केवल अपने या अपने परिवार के प्रति सतर्क रहते थे, अपितु सामान्य जनता के रोग भी उन्हें अन्दर तक मर्माहत कर जाते थे। इसीलिए उन्होंने फरीदाबाद में अपने पुत्रों के साथ मिलकर जीवन-जगन चेरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना की, जो आज होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति से सामान्य जनता के कष्टों का निवारण करने में समर्थ है। __ इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि श्री लाला हरजसराय जी ने वह सब कुछ किया, जो संसार में अंगलियों पर गिने जा सकने वाले लोग किया करते हैं। उन्होंने बिना किसी नाम और यश की कामना से, निष्काम भाव से समाज सेवा की। हमें यह कहने में बड़े ही गर्व का अनुभव हो रहा है कि लालाजी उन गिने-चुने व्यक्तियों में से थे, जिनको सरस्वती और लक्ष्मी का वरद उपहार साथसाथ प्राप्त था। इतना सब कुछ होते हुए उन्होंने अपना समूचा जीवन एक विद्या प्रेमी एवं समाज सेवी के रूप में व्यतीत किया। वे एक ऐसे व्यक्तित्व के स्वामी थे, जिनके अथक परिश्रम एवं मूकसेवा से पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान के रूप में एक ऐसी संस्था का विकास हुआ, जो उनके व्यक्तित्व और कृतित्व का जीवन्त स्वरूप है और जिसके कारण वे जैन विद्या के उन्नयन में लगे व्यक्तियों में अग्रगण्य माने जा सकते हैं। सामाजिक कार्य सम्पन्न करते हुए भी आर्थिक मुद्दों पर उनकी सतकर्ता दर्शनीय थी। निश्चित नियमों का अनुपालन करते हए शोहरत की अपेक्षा से रहित कर्म में तल्लीनता ही उनके जीवन का बीजमन्त्र रहा है। सम्बन्धित संस्थान की रद्दी की टोकरी का एक टुकड़ा भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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