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कु० रीता बिश्नोई पाण्डव पुराण में युद्ध वर्णनों का बाहुल्य है। कवि का युद्ध वर्णन का कौशल अद्वितीय है। युद्ध वर्णनों के पठन अथवा श्रवण मात्र से ही युद्ध की भीषणता का दृश्य आखों के सामने उपस्थित हो जाता है। उदाहरणार्थ- अर्जुन के द्वारा गिराये हुये भग्न रथों से मार्ग रुक गया तथा जिनको शुण्डायें टूट गयी है और जो दुःख से चिग्घाड़ रहे हैं ऐसे हाथियों से मार्ग व्याप्त हुआ। रणभूमि में मस्तक रहित शरीर नृत्य करने लगे तथा उनके मस्तकों द्वारा भूमि लाल हो गयी । अगाध समुद्र में तैरने के लिये असमर्थ मनुष्य जैसे उसमें कहीं भी स्थिर नहीं होते वैसे ही योद्धाओं के रक्त के प्रवाह में तैरने वाले मानव कहीं भी नहीं ठहर सके।
युद्ध के प्रारम्भ में रण सूचक वाद्य बजाये जाते थे इनमें रणभेरी२, पाञ्जजन्य शंख', देवदत्त शंख , दुन्दुभि', आदि का उल्लेख आया है। सैन्य में हुये शकुन तथा अपशकुन पर भी विचार करने का उल्लेख पाण्डव पुराण में आया है। मगधपति जरासन्ध के सैन्य में अनेकों दुनिमित्त हुये जो कि जय के अभाव को सूचित करते थे तब दुर्योधन ने अपने कुशलमन्त्री को बुलाकर इन सब दुनिमित्तों के बारे विचार किया था। न्याय तथा दण्ड व्यवस्था
___ न्याय तथा दण्ड व्यवस्था के बारे में पाण्डव पुराण में विशेष उल्लेख नहीं आया है एक स्थान पर केवल इतना कहा गया है कि श्रीवर्मा राजा ने अपने चार ब्राह्मण मन्त्रियों को, जो कि अकम्पनाचार्य के संघ को तथा श्रुतसागर मुनि को मारने के लिये उद्यत हुये थे, गधे पर बैठा कर तथा उनके मस्तकों को मड वाकर दण्ड स्वरूप उन्हें नगर से बाहर निकाल दिया था। इसके अतिरिक्त कहीं पर भी न्याय व दण्ड विधान का कोई भी उल्लेख नहीं आया है।
-द्वारा बलराम सिंह बिश्नोई २१, पटेलनगर, मुजफ्फरनगर २५१००१ ( उ० प्र०)
१. पाण्डव पुराण, २०११११-११३ । २. पाण्डव पुराण, ३३८१, १९।३२ । ३. पाण्डव पुराण, १९७७, २०११६४ । ४. पाण्डव पुराण, २१११२७ । ५. पाण्डव पुराण, १५।१२९ । ६. पाण्डव पुराण, १९३८२-८५ । ७. पाण्डव पुराण, ७४४९-५० ।
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