Book Title: Aspect of Jainology Part 1 Lala Harjas Rai
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 144
________________ दशरूपक और नाट्यदर्पण में रस-स्वरूप एवं निष्पत्ति : एक तुलनात्मक विवेचन १२७ पोषक इन व्यभिचारीभावों के अभाव में रसास्वाद असम्भव है। नाट्यदर्पण के अनुसार स्त्रीचिन्ता-रूप व्यभिचारी के अभाव में शृङ्गार, धति के अभाव में हास्य, विषाद के अभाव में करुण, के अभाव में रौद्र. हर्ष के अभाव में वीर. त्रास के अभाव में भय, शङ्गा के अभाव में बीभत्स. औत्सुक्य के अभाव अद्भत और निर्वेद के अभाव में शान्त रस का प्रादुर्भाव असम्भव है। अन्यत्र अथवा विरक्त चित्त वाले व्यक्ति को वाक्यार्थ-बोध अथवा स्त्री आदि के दर्शन होने पर भी इनके अभाव में रसास्वाद नहीं होता है । इनके अत्यन्त सूक्ष्म अथवा शीघ्रतापूर्वक घटित होने के कारण ही इनका यत्र-तत्र अभाव-सा दृष्टिगोचर होता है। वस्तुतः अनुकार्य एवं अनुकर्तागत व्यभिचारी तो सामाजिक के रसोद्बोधन में हेतुभूत होने से विभाव ही स्वीकार किये जायेंगे।' रामचन्द्र-गुणचन्द्र रस की द्विविध स्थिति को स्वीकार करते हैं-प्रथम, लोकगत रस और द्वितीय, काव्यगत रस । नियत विषयत्व और सामान्य विषयत्व भेद से यह लौकिक रसास्वाद पुनः दो प्रकार का होता है। नियत विषयत्व आस्वाद व्यक्तिविशेष तक सीमित होता है, क्योंकि इसमें लोक में वास्तविक रूप में स्थित सीता एवं राम आदि विभाव व्यक्तिविशेष में ही स्थित 'रति' आदि रूप स्थायीभाव को ही रसरूप में परिपुष्ट करते हैं। जब इन विभावों के द्वारा सामान्य रूप में अनेक व्यक्तियों के 'रति' आदि स्थायीभावों का रसरूप में पोषण होता है, तब यह रसास्वाद व्यक्ति विशेष से सम्बद्ध न होने के कारण सामान्य विषयत्व कहलाता है। रामचन्द्र-गुणचन्द्र के अनुसार युवक के द्वारा रागवती युवती का आश्रय लेकर तत्सम्बद्ध अपनी 'रति' का शृङ्गार' के रूप में आस्वादन नियताविषयत्व है तो दूसरे में अनुरक्त वनिता का आश्रय लेकर सामान्य विषय 'रति' का उपचय सामान्य विषयत्व है। इसी प्रकार बन्धु शोक से खिन्न एवं रोती हुई युवती को देखकर सामान्य विषयक करुण रसास्वाद ही होता है। उनका स्पष्ट विचार है कि अन्य रसों के सम्बन्ध में भी विशेष एवं सामान्य विषयत्व द्रष्टव्य है । ____ काव्यगत रस विशेष और सामान्य विषय-विभाग से रहित होता है। काव्य के द्वारा मात्र सामान्य रूप में रसोबोध होता है; क्योंकि काव्य एवं अभिनय के द्वारा अविद्यमान होने पर भी विद्यमान के सदृश प्रतीत कराये गये 'विभाव' श्रोता, अनुसन्धाता और प्रेक्षक के 'स्थायीभाव' को सामान्यरूपेण ही रसरूप में उबुद्ध करते हैं।' नियत विषयत्व और सामान्य विषयत्व के अतिरिक्त रामचन्द्र-गुणचन्द्र लोकगत और काव्यगत रस की दो अन्य विशेषताओं का भी उल्लेख करते हैं। उनके अनुसार लोकगत रस स्वगत और १. विवृत्ति, ना० द० पृ० १४३ । २. यत्र विभावाः परमार्थेन सन्तः प्रतिनियत विषयमेव स्थायिनं रसत्वमापादयन्ति । तत्र नियत विषयोल्लेखो रसास्वाद प्रत्ययः। युवा हि रागवतीं युवतिमवलम्ब्य तद्विषयामेव रति शृङ्गारतयाऽऽस्वादयति । यत्र तु परानुरक्तां वनितामवलम्ब्य सामान्यविषया रतिरूपचयमुपैति, तत्र न नियतविषयः शृङ्गाररसास्वादः, विभावानां सामान्यविषये स्थाय्याविर्भावकत्वात् । बन्धुशोकाः च रूदती स्त्रियमवलोक्य सामान्यविषय एव करुणरसास्वादः । एवमन्येष्वपि रसेषु विशेष-सामान्यविषयत्वं द्रष्टव्यम् । पूर्वोक्त पृ० १४२ । ३. ये पुनरपरमार्थसन्तोऽपि काव्याभिनयाभ्यां सन्त इवोपनीता विभावास्ते श्रोत्रनुसन्धातृप्रेक्षकाणां सामान्य विषयमेव स्थायिनं रसत्वमापादयन्ति । अत्र च विषयविभागानपेक्षी रसास्वाद प्रत्ययः । पूर्वोक्त १० १४२-१४३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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