Book Title: Aspect of Jainology Part 1 Lala Harjas Rai
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 165
________________ डॉ. मारुति नन्दन प्रसाद तिवारी मण्डप की भित्ति, शिखरं एवं अन्य भागों पर विष्णु-लक्ष्मी तथा शिव-पार्वती (२५ से अधिक ) की सर्वाधिक मूर्तियाँ हैं । इनमें शिवपार्वती या तो त्रिभंग में हैं या फिर ललितमुद्रा में । शिव-पार्वती की मूर्तियों में शिव का एक हाथ कटि पर है और दो में पद्म और सर्प हैं; एक हाथ आलिंगनमुद्रा में है । वाम पार्श्व की देवी का दाहिना हाथ आलिंगनमुद्रा में है तथा बायें में बीज पूरक ( या दर्पण ) है | कभी-कभी शिव के दो हाथों में से एक में फल और दूसरे में पद्म भी प्रदर्शित है । लक्ष्मी-नारायण मूर्तियों में, जिसका एक मनोज्ञ उदाहरण दक्षिणी भित्ति पर है, विष्णु किरोटमुकुट से शोभित हैं और उनके तीन हाथों में पद्म, शंख और चक्र प्रदर्शित हैं, एक हाथ आलिंगनमुद्रा है । कभी-कभी विष्णु को गदा पर एक हाथ टेककर आराम करते हुये भी दिखाया गया है । ऐसी मूर्तियों में अन्य हाथों में शंख और सर्प ( या फल या पद्म) हैं। वाम पार्श्व की लक्ष्मी आकृति का दाहिना हाथ सदा आलिंगनमुद्रा में है और बायें में पद्म है । १४८ विष्णु और शिव के अतिरिक्त मन्दिर पर ब्रह्मा की भी स्वतन्त्र और युगल मूर्तियाँ हैं । मन्दिर की जंघा पर श्मश्रु युक्त ब्रह्मा की एक स्वतन्त्र मूर्ति है । ब्रह्मा के करों में वरदाक्ष, स्रुक, पुस्तक और कमण्डलु प्रदर्शित हैं । यहाँ ब्रह्मा के साथ न तो वाहन दिखाया गया है और न ही ब्रह्मा त्रिमुख हैं । उत्तरो भित्ति पर ब्रह्मा को शक्तिसहित मूर्ति है । ब्रह्मा यहाँ तीन मुखों वाले, घटोदर और श्मश्रु युक्त हैं । उनके दो हाथों में स्रुक और पुस्तक हैं जकि शेष दो हाथों में से एक कटि पर है और दूसरा आलिंगनमुद्रा में है । यहाँ शक्ति को ब्रह्मा के दाहिने पावं में दिखलाया गया है । देवी की वाम भुजा आलिंगनमुद्रा में है जबकि दाये में चक्रकार पद्म है । जंघा पर बलराम-रेवती, कुबेर- कोबेरी, अग्नि-आग्नेयी, राम-सीता, काम - रति एवं यमयी (?) की भी मूर्तियां हैं। दक्षिणी भित्ति की सप्त सर्पफणों के छत्रवाली किरीट मुकुट से शोभित बलराम की मूर्ति में दो करों में चष्क और हल हैं; एक दाहिना हाथ आलिंगनमुद्रा में है तथा बायां कटि पर है । यहाँ भी शक्ति दक्षिण पाश्व में ही खड़ी हैं । शक्ति के दाहिने हाथ में सनाल पद्म है जबकि बायां आलिंगनमुद्रा में है । दक्षिणी भित्ति पर ही कुबेर की भी शक्तिसहित मूर्ति है । कुबेर की एक दक्षिण भुजा आलिंगन में है और दो में नकुलक एवं चक्राकार पद्म हैं; चौथी भुजा गदा पर आराम कर रही है । दक्षिण पार्श्व की कौबेरी को मूर्ति में दाहिने हाथ में चक्राकार पद्म है, जब कि बायां आलिंगनमुद्रा में है । उत्तरी भित्ति की राम-सीता मूर्ति में किरीट मुकुट तथा छन्नवोर से सज्जित राम के दो हाथों में एक लम्बा बाण प्रदर्शित है। राम की उर्ध्वं वाम भुजा आलिंगनमुद्रा में है जबकि नीचे का दाहिना हाथ पालितमुद्रा में दक्षिण पार्श्व में खड़े कपिमुख हनुमान के मस्तक पर है। राम की पीठ पर तूणीर भी प्रदर्शित है। सीता के बायें हाथ में नीलोत्पल है और दाहिना हाथ आलिंगनमुद्रा में है । इस मूर्ति के ऊपर हो सम्भवतः रावण द्वारा सीता से भिक्षा ग्रहण करने का प्रसंग भी उत्कीर्ण है । जटामुकुट से युक्त साधु आकृति ( रावण ) के भिक्षापात्र में उसके सामने खड़ी आकृति (सीता) को भिक्षा डालते हुए दिखाया गया है। पार्श्वनाथ मन्दिर के दक्षिण शिखर पर उत्कीर्ण रामायण के एक अन्य कथा दृश्य का उल्लेख भी यहाँ प्रासंगिक है । अशोकवाटिका से सम्बन्धित दृश्य में क्लान्तमुख सीता को खड्गधारी असुर आकृतियों से वेष्टित दिखाया गया है । सीता के समक्ष ही कपिमुख हनुमान की आकृति बनी है जिन्हें सोता को दर्शाया गया है। जैन ग्रन्थ पउमचरिय ( विमलसूरिकृत ) में रामकथा का विस्तृत उल्लेख है । इस राम की मुद्रिका देते हुए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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