Book Title: Aspect of Jainology Part 1 Lala Harjas Rai
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 121
________________ १०४ कु० रीता बिश्नोई पुराण में जरासन्ध का द्वारिका में रह रहे पाण्डवों का गुप्त पुरुषों द्वारा खोज कराने का उल्लेख मिलता है। राष्ट्र-रक्षा दुर्ग, प्राकार एवं परिखा शत्रुओं के आक्रमण से नगर एवं राजा की रक्षा के लिये प्राकार एवं दुर्ग का निर्माण किया जाता था। नगर की सुरक्षा की दृष्टि से उसके चारों ओर एक ऊँची सुदृढ़ दीवार बनायी जाती थी जिसे प्राकार कहा जाता था। पाण्डव पुराण में अत्यधिक ऊंचे प्राकार बनाने का उल्लेख आया है। हस्तिनापुर नगर के प्राकार के शिखरों पर ताराओं का समूह जड़े हुए मोतियों के समान सुशोभित हो रहा था । इस वर्णन से ही इस प्राकार की ऊँचाई का अनुमान लगाया जा सकता है। नगर की सुरक्षा के लिये उसके चारों ओर परिखा या खाई खोदी जाती थी। हस्तिनापुर नगर की खाई शेषनाग के द्वारा छोड़ी हुई विष पूर्ण, मणियुक्त और भय दिखाने वाली मानों काञ्चल ही प्रतीत होती थी । एक अन्य स्थान पर चम्पापुरी नगर की खाई की तुलना पाताल की गहराई से की गयी है | शत्रु के आक्रमण के समय नगर-द्वार को बन्द करने का वर्णन भी आया है । पाण्डव पुराण में दुर्ग का उल्लेख कहीं नहीं आया है। पतञ्जलि के अनुसार दुर्ग बनाने के लिये ऐसी भूमि जाती थी, जिसमें परिखा बन सके। क्योंकि पाण्डव पराण में परिखा का वर्णन मिलता है इससे स्पष्ट है कि दुर्ग भी अवश्य होते होंगे । उनका वर्णन नहीं किया गया है । सेना किसी भी राज्य का आधार कोष एवं सेना माने गये हैं। राजा की शक्ति सैन्य बल पर ही प्रभावशाली बन पाती है। प्राचीन काल से ही राजशास्त्र-प्रणेताओं ने बल का महत्त्व स्वीकार किया है। कौटिल्य के अनुसार राजा को दो प्रकार के कोपों से भय रहता है पहला-आन्तरिक कोप. जो अमात्यों के कोप से उत्पन्न होता है, दूसरा बाह्य कोप, जो राजाओं के आक्रमण का है। इन दोनों कोपों से रक्षा सैन्य बल से ही हो सकती है। पाण्डव पुराण में चतुरङ्गिणी सेना (बल) का उल्लेख अनेक स्थानों पर है। चतुरङ्गबल के अन्तर्गत हस्ति-सेना, अश्व-सेना, रथ-सेना तथा पादाति सेना आती है। राजा श्रेणिक महावीर प्रभु के दर्शनार्थ वैभार पर्वत पर चतुरङ्ग सेना के साथ पहुंचते हैं। इसी प्रकार राजा पाण्डु वन क्रीडा के लिये चतुरङ्ग सेना के साथ वन के लिये प्रस्थान करते हैं । युद्ध क्षेत्र में तो शत्रु राजाओं से युद्ध करते समय चतुरङ्गिणी सेना का ढढी १. पाण्डव पुराण, १९।२६ । २ पाण्डव पुराण, २११८५ । ३. पाण्डव पुराण, २॥१८६ । ४. पाण्डव पुराण, ७।२७० । ५. पाण्डव पुराण, २१११३० । ६. पतञ्जलि कालीन भारत, पु० ३८१ । ७. पाण्डव पुराण, १।१०५ । ८. पाण्डव पुराण, ९॥२-६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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