Book Title: Aspect of Jainology Part 1 Lala Harjas Rai
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 136
________________ व्यावहारिक जीवन में नाम, रूप, स्थापना और प्रतीक ११९ हैं। संख्या का भी कोई आकार नहीं है, वह केवल बुद्धि का विषय है। बुद्धिवादी गणितज्ञों ने विभिन्न लिपियों में उसे भी साकार बना कर छोड़ा है : देवनागरी ६ ७ ८ ९ रोमन 6 7 8 9 फारसी ५ ८ . ' इन अमूर्त संख्याओं के साथ-साथ बहुत से अमूर्त गुणों और क्रियाओं की भी आकृतियाँ बनाई गई हैं संयोग + x विभाग - साम्य = किसी सत् वस्तु का आकार बना लेना तो समझ में आता है, वास्तववादी गणितज्ञों ने असत् एवं अवस्तु रूप अभाव को भी वर्तुलाकार शून्य ( 0 ) की आकृति प्रदान की है। अर्थशास्त्र की एक पुस्तक में यह आकृति दी गई है : बताइये, अर्थशास्त्रियों के अतिरिक्त आयात और निर्यात का यह आकार क्या कभी किसी और को भी दिखाई देता है ? भौगोलिक मानचित्रों में देशों, मैदानों, पर्वतों, मरुस्थलों, समुद्रों, नदियों और रेलवे लाइनों को रेखाओं और वर्गों के माध्यम से पढ़ाया जाता है। वस्तुतः वहाँ उनमें से एक भी वस्तु नहीं रहती है। विज्ञान में भी रूपहीन गैसों और ऊर्जाओं को स्थूल चित्रों के द्वारा समझाने की परम्परा है। इस प्रकार मानव में कृत्रिम रूपनिर्माण की प्रवृत्ति नैसर्गिक है। वह अपनी रचना में केवल मूर्त वस्तुओं के रूपों का अनुकरण ही नहीं करता, अपितु अवस्तु और अमूर्त सत्ताओं की भी काल्पनिक आकृतियाँ गढ़ लेता है। यही नहीं, अपनी इच्छा-शक्ति से किसी भी नामरूपमय द्रव्य का उससे भिन्न दूसरे द्रव्य से अभेद स्थापित करना भी मानव का स्वभावज गुण है। इस प्रक्रिया को जैनशास्त्रों में स्थापना कहते हैं। इसके लिये रूप साम्य अनिवार्य नहीं है, क्योंकि अमूर्त द्रव्यों की भी स्थापना मूर्त द्रव्यों के रूप में की जाती है । प्रायः अयथार्थ ज्ञान भ्रामक होता है, परन्तु स्थापना अयथार्थ होने पर भी भ्रम से भिन्न है । भ्रम में रज्जु की प्रतीति नहीं होती है, सर्प की ही प्रतीति होती है, परन्तु स्थापना में रज्जु को ही प्रतीति होती है, स्थापक उसे आग्रह पूर्वक सर्प मान लेता है । जैनों ने तत्त्वनिरूपण में स्थापना को आवश्यक निक्षेप माना है। स्थापन-प्रवृत्ति का उद्गम मनुष्य में शैशव से ही होता है । बहुधा छोटे बच्चे खेल में अपने आगे छोटी-छोटी पत्तियां रख लेते हैं और आपस में कहते हैं—'यह हमारा घोड़ा है, यह हमारा हाथी है और यह हमारा ऊंट है। बालिकाओं में गुड़ियों और गुड्डों के विवाह का खेल प्रसिद्ध है। कभी-कभी एक बालक कूद कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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