Book Title: Aspect of Jainology Part 1 Lala Harjas Rai
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 120
________________ पाण्डव पुराण में राजनैतिक स्थिति १०३ माना गया है' । शुक्रनीति में भी सेनापति के आवश्यक गुणों का वर्णन किया गया है । पाण्डव पुराण में सेनापति के मस्तक पर पट्ट बांधने का उल्लेख आया है । चक्रवर्ती जरासन्ध के द्वारा मघुराजा के मस्तक पर चर्मपट्ट बांधने, दुर्योधन द्वारा अश्वत्थामा के मस्तक पर सेनापत्ति पट्ट बांधने तथा किसी समय भरत चक्रवर्ती द्वारा जयकुमार के मस्तक पर वीरपट्ट बांधकर सेनापति पद दिये जाने का वर्णन मिलता है । इससे स्पष्ट है कि सेनापति के पद पर अत्यधिक वीर, साहसी, गुणी एवं योग्य व्यक्ति नियुक्त किया जाता था । दूत दूत राज्य का अभिन्न अङ्ग है । प्राचीन समय से ही राजनीति में उसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । महाभारत, मनुस्मृति तथा हितोपदेश' में दूतों के गुणों का विशद वर्णन है । कौटिल्य दूत को राजा का गुप्त सलाहकार माना है । दूत प्रकाश में कार्य करता है जबकि गुप्तचर छिप कर । दूत शब्द का अर्थ है - सन्देशवाहक, जिससे स्पष्ट है कि किसी विशेष कार्य के सम्पादनार्थ ही दूत भेजे जाते थे । पाण्डव पुराण में दूत व्यवस्था का उल्लेख अधिक मिलता है । राजा अन्धकवृष्टि द्वारा पाण्डु व कुन्ती के विवाहार्थ व्यास राजा के पास दूत भेजने, द्रुपद राजा का द्रौपदी स्वयंवर के लिये निमन्त्रण पत्रिकायें देकर दूतों को भेजने चक्रवर्ती का यादवों के पास दूत भेजने " केशव का कर्ण के पास दूत भेजने आदि अनेक उदाहरण पाण्डव पुराण में मिलते हैं । २ गुप्तचर १३ गुप्तचर राजा की आँखें हैं, इन्हीं के द्वारा वह राज्य की गतिविधियों को देखता रहता है । प्राचीन समय से ही गुप्तचरों का महत्त्वपूर्ण स्थान है । कौटिल्य ने कार्यभेद से गुप्तचरों के नौ विभाग किये हैं- कापाटिक, उदास्थित, गृहपतिक, वैदेहक, तापस, स्त्री, तीक्ष्ण, रसद एवं भिक्षु । मनुस्मृति याज्ञवल्क्यस्मृति", एवं महाभारत' में भी इनका महत्त्व प्रतिपादित है । पाण्डव १. महाभारत उद्योग पर्व १५।१९-२५ । २. शुक्रनीति, २.४२२ । ३. पाण्डव पुराण, २०१३०४ । ४. पाण्डव पुराण, २०१३०६ । ५. पाण्डव पुराण, ३५९ । ६. महाभारत, उद्योगपर्व, ३७।२७ । ७. मनुस्मृति, ७।६३-६४ । ८. हितोपदेश विग्रह, १९ । ९. पाण्डव पुराण, ८1१७ । १०. पाण्डव पुराण, १५।५३ ॥ ११. पाण्डव पुराण, १९३९ । १२. पाण्डव पुराण, १९६१ । १३. अर्थशास्त्र १।१० । १४. मनुस्मृति, ७६६ । १५. याज्ञवल्क्यस्मृति, १३२७ । १६. महाभारत ६ । ३६।७।१३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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