Book Title: Aspect of Jainology Part 1 Lala Harjas Rai
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 105
________________ अनुपम जैन एवं सुरेशचन्द्र अग्रवाल चउविधि संखाणे पण्णत्ते तं जहा । परिकम्म ववहारे रज्जु रासी ॥ ' - ७ इस गाथा पर अद्यावधि किसी ने ध्यान नहीं दिया है। एक ही ग्रन्थ में दो प्रकार के उल्लेख क्यों हैं ? संख्यान के चार प्रकार पिछले पृष्ठ पर उद्धृत दत्त के निष्कर्ष के प्रतिकूल हैं । क्या यहाँ संख्यान से कोई भिन्न अर्थ ध्वनित होता है ? अथवा क्या यहाँ पर इंगित संख्यान के प्रकार कोई विशेष गुण रखते हैं ? इस विषय पर अभी और व्यापक विचार विमर्श अपेक्षित है । ८८ 1. Agrawal, N.B. Lal 2. Bose, DM & Sen, SN 3. Dutt, B. B 4. Dutt, B. B. & Singh A. N. 5. Jain, G. R. 6. Jain, L. C. 7. Jain, L. C. 8. Jain, L. C. 9. Jain, L. C. 10. Kapadia, H. R. 11. Upadhyaya, BL 12. Shah, AL 13. Srinivas, CP. Iengar 14. 15. 16. 17. -- Jain Education International ― - - - - -- 'गणित एवं ज्योतिष के विकास में जैनाचार्यों का योगदान' आगरा वि० वि० में प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध १९७२ । 'A Concise History of Sciences in India' I. N. S. A. New Delhi. 1971 'The Jaina School of Mathematics' B. C. M. S. (Calcatta). 21 pp. 115-143, 1929 'हिन्दू गणित शास्त्र का इतिहास' (हिन्दी संस्करण) अनु० डा० कृपाशंकर शुक्ल – उ० प्र० हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, लखनऊ, १९६७ । 'Cosmology. Old & New' (Hindi Ed) Bhartiya Jnanpitha, New Delhi 1974. - तिलोयपणत्ति का गणित' अन्तर्गत जम्बुद्दीवपणत्तिरागते, जैन संस्कृति संरक्षक संघ, शोलापुर १९५० । ‘Set Theory in Jaina School of Mathematics I. J. H.S (Calcutta), 8-1, pp. 1-27. 1973 'आगमों में निहित गणितीय सामग्री एवं उसका मूल्यांकन' 'तुलसी पूज्य' लाडन' पृ० ३५-७४, १९८० Exact Sciences from Jaina Sciences. Vol. I Rajasthan Prakrita Bharati, Jaipur 1983. Introduction of Gorilo Tilak' Gaekwad Oriental Series, Baroda 1937. 'प्राचीन भारतीय गणित' विज्ञान भारती, दिल्ली १९७१ 'जैन साहित्य का बृहद् इतिहास - भाग ५ पा० वि० शोध संस्थान, वाराणसी १९६९ । The History of Ancient Indian Mathematics National World Press Calcutta 1967. अंग ताण- - भाग १, जैन विश्व भारती, लाडनू १९७५ ari (स्थानांग सूत्त ) टीक, जैन विश्व भारती, लाडनूं १९८० तिलोपपण्णत्ति - सटीक जैन संस्कृति संरक्षक संघ, शोलापुर १९४४ 'गणितसार संग्रह ( हिन्दी संस्करण ) जैन संस्कृति संरक्षक संघ, शोलापुर १९६२ १. ठाणं ४, सूत्र, ५०५, पृ० ४३८ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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