Book Title: Ashtdashi
Author(s): Bhupraj Jain
Publisher: Shwetambar Sthanakwasi Jain Sabha Kolkatta

View full book text
Previous | Next

Page 221
________________ गायत्री कल्याण कांकरिया “विहग सुन्दर, समन सन्दर, मानव तम सबसे सुन्दरतम' कविवर पंत की यह शब्दावली मन को झंकृत मन करती है और भावना के समुद्र में हिलोरे लेते हुए यह प्रकाशित करती है कि सृष्टि की श्रेष्ठतम रचना मानव तुम स्वतंत्र हो. तम अपने पुरुषार्थ से अपना उर्वारोहण भी कर सकते हो स्वयं बनो तुम अपने दीपक तो पावो भवपार। मानव की प्रत्येक प्रेरणा किसी भौतिक जरुरत से उत्पन्न होती है तथापि इस बात पर अखंड विश्वास है कि मानव में कोई उर्ध्वगामी शक्ति है जो अनंत है "बनती संवेदना अभिव्यक्त होकर कला'। हर अणु की संवेदना से स्पन्दित सृष्टि' खुल जाती है जब अर्न्तदृष्टि तब बनता वह स्व का दर्पण''। सर्वोत्तम मनुष्य वही है जो अवसरों की बाट न जोहकर अवसर को अपना दास बना लेता है। अपने व्यक्तित्व को पहचान कर किया गया कर्म ही सफलता हासिल कर सकता है। प्रत्येक स्व का एक मूल्य होता है जो मूल्य नहीं दे सकता, वह स्वत्व को नहीं पा सकता। वास्तव में नारी में ही नर समाया है, पुत्रीभाव, प्रियाभाव और मातृभाव नारी की विवशता है। जो विग्रह (शरीर) विधाता की ओर से उसे मिला है, चैतन्य है। जहां वहां शक्ति है, भक्ति है जहां वहां आनन्द है। नारी शक्ति करुणा, प्रेम, क्षमा से पूर्णत: आच्छादित होती है। देह पर शासन भले ही न हो पर हृदय पर नारी का ही साम्राज्य होता है। जैसे ही हम भाषा में किसी सत्य को डालते हैं वह तिरछा हो जाता है। भाषा को बाहर निकालते ही वह शुद्ध हो जाता है और शून्य में ले जाते ही वह पूर्ण हो जाता है। कहा गया है “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमंते तत्र देवता''। एक ही चीज गलत है, मनुष्य का टुकड़ों में बंट जाना और एक ही सहज सत्य है कि आदमी का जुड़ जाना, परम तत्व को पाना, मानव का मानव के प्रति विश्वस्त होना क्योंकि जीवन सहने से बनता है, कहने से नहीं। जीवन में जितना ऊपर जाना हो उतना ही जीवन के साथ श्रम करना जरूरी है लेकिन यह श्रम तभी होगा जब सबसे पहले यह आकांक्षा, यह प्यास, यह अभीप्सा पैदा हो जाय कि जीवन में कुछ होना है, कुछ पाना है, कुछ खोजना है। स्व ही वास्तविक शास्त्र है और स्व ही वास्तविक गुरु। नारी की इच्छा शक्ति से ही यह सृष्टि बनी है और "सृष्टि को चलाने में नारी शक्ति का योगदान बहुत ही महत्वपूर्ण है, अतुलनीय है। बच्चा मां की कोख में ही पनपता है उसकी जीवनगति सिर्फ मां पर ही आधारित होती है। मां की ममता, धैर्य, संकल्प, आत्मविश्वास, विचारों की दृढ़ता व आचरण ही प्रेरणा स्रोत बनते हैं- सर्वांगीण विकास के लिए।" आज इस भौतिक युग में विज्ञान की उन्नति से नये-नये आविष्कारों द्वारा विभिन्न सुविधाएं प्राप्त हैं और नारी जाति ने अपनी पूर्ण शक्ति से बांह पसारी है कि आकाश को भी अपनी बांहों में समेटने को लालायित है। खेलकूद, मनोरंजन का जीवन के विकास में प्रयोजन है और आज नारी शक्ति कहीं भी किसी भी मायने में किसी से कम नहीं है। आज हर दिशा में हरएक क्षेत्र में नारी का बोलबाला है। इतिहास साक्षी है कि मानव में नर को ६४ कला और नारी को बहत्तर कलाओं का ज्ञान मिला था और आज अपनी सूझबूझ से, अपने पराक्रम से हर मोड़पर नारी ने प्रत्येक सपने को साकार करने में अपनी शक्ति की योग्यता को उजागर किया है। किसी भी प्रतिस्पर्धा में वह पीछे नहीं हैं, हर पायदान पर उच्चतम स्थान पाने की क्षमता नारी शक्ति में है चाहे पारिवारिक हो, सामाजिक हो, व्यावसायिक हो या राजकीय। अनगिनत व्यक्तित्व इससे जुड़े हैं, कितनों का नाम गिनाये? विष्णु की शक्ति स्वरूपा कहीं पालनहारी (महालक्ष्मी) ब्रह्मा की शक्तिस्वरूपा (महा सरस्वती) ज्ञान दर्शन चारित्र को संवारने वाली और शिव की शक्ति स्वरूपा (महाकाली) दुर्गा, चंडीरूप धर कर अपनी बाधाओं से लड़नेवाली, सबको शांति समाधान देनेवाली मनमोहिनी नारी की शक्ति ही है- इस कलियुग में भी स्त्री शक्ति को योगमाया और आदिशक्ति के रूप में प्रतिष्ठापित करने में सक्षम है। दर्शन और विज्ञान का यह शाश्वत सिद्धांत है जो सत है वह सदाकाल सत ही रहता है। प्रज्ञा ने ही परमात्मा की तलाश की है और अपनी अनुभूति के बल पर उसे प्रकाशित व परिभाषित भी किया है या यूं कहें नारी वह दीप नहीं जो हल्के से पवन झकोरे से बुझ जाये बल्कि वह सूरज है, स्वयं ऐसी ज्योति है जो आंधी से भी न बुझ पाये। चहुंदिशा फैली है, नारी शक्ति । जिस तरह न में आ और र में ई की मात्रा से नर से नारी रूपान्तरित हुई और विशिष्ट बन गई,बस उसी तरह अपने को संतुलित रखकर मध्य मार्ग पर स्थिर रहकर अपने कर्तव्य व फर्ज को निभाते हुए अपनी मर्यादा को, अपने विग्रह को समझ कर, जी कर अन्त: चन्द्रिका से चन्द्रित होकर संसार में शीतलता, शांति, आनन्द व समाधान की दिव्य दृष्टि से वर्षा करे, एकाकार बनी रहे। औरंगबाद (महाराष्ट्र) 0 अप्टदशी / 1300 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342