Book Title: Ashtdashi
Author(s): Bhupraj Jain
Publisher: Shwetambar Sthanakwasi Jain Sabha Kolkatta

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Page 296
________________ सभी छोटे से छोटे जन्तु की यत्ना से रक्षा का दायित्व निभाना उनके अहिंसा व्रत का आवश्यक अंग है। मन, वचन, काया, कर्म से हिंसा करनी नहीं करवानी नहीं, करने वाले की संस्तुति या अनुमोदना भी नहीं करनी । सम्राट अशोक के हृदय में अहिंसा के भाव कलिंग युद्ध में हुए हिंसा के तांडव कृत्य को देखकर हुआ और उन्होंने प्रायश्चित स्वरूप अहिंसा का सन्देश, भगवान बुद्ध की करुणा, अहिंसा, प्रेम का सन्देश विश्व भर में फैलाने के लिए अनेक प्रबुद्ध प्रज्ञावान लोगों के साथ अपने स्वयं के युवा पुत्र, पुत्रियों महेन्द्र एवं संघमित्रा को भी यही दायित्व दिया। फलस्वरूप बुद्ध द्वारा दी गई अहिंसा व्रत को दक्षिण पूर्व एशिया, चीन, जापान, कोरिया, पश्चिम एवं उत्तर के प्रदेशों तक मानव कल्याण हेतु पहुँचाया। यदि सम्राट अशोक के दिमाग में भाव हिंसा (जिसकी व्याख्या महावीर करते हैं) की उत्पत्ति कलिंग युद्ध पूर्व हो जाती तो युद्ध से देश को बचाया जा सकता था। आज भी अहिंसा के इस स्वरूप की सबसे ज्यादा आवश्यकता है। हुक्मरानों, उच्चस्थ राजनीतिज्ञों, सेना अधिकारियों, जनभावना को प्रशस्त करने वाले समाज, धर्म जाति के अगुवा लोगों को है। इनका दिमाग जब तक अहिंसक होगा, दुनिया में सशस्त्र वारदात, युद्ध आतंकी हमले नहीं हो सकते हैं। यू० एन० ओ० संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा मनाये जाने वाले अहिंसा के दिवस का सबसे बड़ा पहलू यही है । असुरक्षा, भय, अशान्ति ऐसे लोगों की दिमागी अशान्ति एवं अहिंसक प्रवतियों से ही संभव है। यही एकमात्र परमाणु विभीषिका से बचने का उपाय है । जरुरत है ऐसे लोगों तक बुद्ध, महावीर और गाँधी के अहिंसा के सन्देश को पहुँचाना ही नहीं उनके मस्तिष्क पटल पर स्थापित करना भी है। अहिंसा के नारे और जयघोषों से अधिक जरूरत हर एक व्यक्ति के जीवन में अहिंसामय व्यवहार अपनाना है। जीवन पद्धति और जीवन के हरएक पहलू खान-पान, रहन-सहन, मिलना - मिलाना, विचार, सम्पर्क सभी में हिंसा की जगह अहिंसक तरीके अपनाये। इसके लिए मूल्यपरक शिक्षा में अहिंसा के गुणों का समावेश शिक्षा के माध्यम से बच्चे-बच्चे में हो । घर-घर से अहिंसा का वास हो महात्मा गाँधी ने महावीर एवं बुद्ध की अहिंसा को जीया है। उनका जीवन ही अहिंसा की किताब है अहिंसा द्वारा गाँधी ने शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार को हिलाकर रख दिया, भारत एवं अन्य ब्रिटिश सरकार के आधीन देशों को स्वतन्त्रता मिली। दुनियां में पहली बार एहसास हुआ कि आपसी झगड़े युद्ध की बजाय प्यार और अहिंसा से भी सुलझ सकते हैं। Jain Education International अहिंसा एवं उससे प्रस्तुत सहस्तित्व (Co-existance) के आधार पर दुनिया के मूल्कों में शान्ति रह सकती है। गाँधी जी की अहिंसा की नींव उनकी माता श्री की धार्मिक आस्था, उनके परिवार के संस्कार, विदेश जाने से पहले जैन सन्त के समक्ष शाकाहार, नशामुक्ति, व्यभिचार मुक्त जीवन का संकल्प, उनके मित्र मार्गदर्शक जैन श्रावक गृहस्थ चिन्तक राजचन्द्र महर्षि का संपर्क था महावीर के सत्य अहिंसा का प्रयोग और प्रचार जितना महात्मा गांधी द्वारा किया गया, उतना अन्य किसी के द्वारा नहीं। गाँधी को अहिंसा का पुजारी, अहिंसा की मूर्ति, अहिंसा स्तम्भ, अहिंसा का पुरोधा आदि प्रारूपों से लोग जानते हैं। इसलिए आज अहिंसा को व्यापक करने के लिए प्रचार-प्रसार एवं विश्वशान्ति के लिए और इसके सशक्त प्रयोग हेतु गाँधी बेहतर और कोई माध्यम नहीं हो सकता । हजारों वर्षों बाद दुनियाँ के नुमाइन्दे राष्ट्र संघ ने विश्व शान्ति एवं कल्याण हेतु अहिंसा को माध्यम बनाने के लिए महात्मा गांधी के जन्म दिन २ अक्टूबर को पूरी दुनिया में इसे "अहिंसा दिवस' के रूप में मान्यता दी है, मनाने का संकल्प किया है। महावीर बुद्ध-गांधी अहिंसा के पर्यायवाची शब्द हैं जहाँ अहिंसा 1 वहीं महावीर, वहीं जैन धर्म, वहीं अहिंसा धर्म, वहीं बुद्ध की करुणा । इस अहिंसा दिवस के उद्घोषणा से भारत के नागरिकों में खुशी की लहर है। जैन धर्मावलम्बी एवं अहिंसा प्रिय जन तो उन्मुक्त हैं। भाव विभोर हैं। इससे भारत का, दुनियाँ के अहिंसा प्रिय लोगों की, जैन लोगों की, शान्ति चाहने वालों की जिम्मेवारी भी बढ़ गई है। अब हर वर्ष गाँधी जयन्ती पर जन-जन में, घरघर में, प्रत्येक मोहल्ले में, हरएक गाँव शहर एवं समूचे राष्ट्र में, विश्व में अहिंसा के प्रेरणात्मक कार्यक्रम बनें लोग हिंसा के विचार, हिंसा का रास्ता छोड़, अहिंसक बनें, अहिंसक जीवन शैली अपनायें निशस्त्रीकरण, सहअस्तित्व, सहकार, प्रेम, करुणा, नशामुक्ति, व्याधि मुक्ति गरीबी, उन्मूलन, शाकाहार प्रोत्साहन जैसे विभिन्न आयामी कार्यक्रम बनें। जीवन बदले । दिशा बदले युग बदले युग की धारा बदले अहिंसा, भय और असुरक्षा से निजात दिलाये। जैन भाई-बहन, साधु-साध्वी, संघ, संस्थायें गाँधी जी जन्म दिन २ अक्टूबर को अपने धर्म के सबसे बड़े उत्सव के रूप में मनायें, स्वयं और अपने समीपस्थ लोगों को अहिंसा का पुट जीवन में बढ़ाये। विश्वधर्म अहिंसा को जन-जन तक पहुँचाने का जिम्मा सम्राट अशोक के पुत्र-पुत्रियों ने जिस तरह ० अष्टदशी / 2050 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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