Book Title: Ashtdashi
Author(s): Bhupraj Jain
Publisher: Shwetambar Sthanakwasi Jain Sabha Kolkatta

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Page 303
________________ और तीव्रतम आत्मनिन्दा करते-करते सर्वोच्च देवलोक गमन शब्दों का सूक्ष्म एवं अदृश्य प्रभाव की संभावना से जुड़ गए। फिर घोर पश्चात्ताप से घाती शब्द का अत्यन्त सक्ष्म एंव अदृश्य प्रभाव भी होता है। मंत्र कर्मदलिकों को नष्ट करके केवलज्ञान को प्राप्त हुए और फिर के शब्दों और संगीत के शब्दों द्वारा वर्तमान युग में कई अद्भुत सर्वकर्मों का क्षय करके सिद्ध बुद्ध मुक्त बन गए। परिणाम ज्ञात हुए है। मंत्रशक्ति और संगीत शक्ति दोनों ही शब्द यह था शब्द का अमोघ प्रभाव। की शक्ति है। पंच परमेष्ठी नमस्कार मंत्र गर्भित विभिन्न मंत्रों मंत्र जप से अनेक लाभ द्वारा आधि-व्याधि, उपाधि पीड़ा, विविध दुःसाध्य रोग, चिन्ता आदि का निवारण किया जाता है। अन्य मंत्रों का भी प्रयोग वैज्ञानिकों ने अनुभव किया है कि समवेत स्वर में उच्चारित विविध लौकिक एवं लोकोत्तर लाभ के लिए किया जाता है। मंत्र पृथ्वी के अयन मण्डल को घेरे हुए विशाल चुम्बकीय प्रवाह शूमेन्स रेजोनेन्स से टकराते हैं और लौटकर समग्र पृथ्वी के गायन द्वारा अनेक रोगों से मुक्ति संभव वायुमण्डल को प्रभावित करते हैं। शूमेन्स रेजोनेन्स के अन्तर्गत आयुर्वेद के भेषजतंत्र में चार प्रकार के भेषज बतलाये गए जो गति तरंगों की रहती है, वही गति मंत्रजाप करने वाले हैं- पवनौकष, जलौकष, नौकष और शाब्दिक। इसमें अन्तिम साधकों की तन्मयता एवं एकाग्रता की स्थिति में मस्तिष्क से भेषज से आशय है- मंत्रोच्चारण एवं लयबद्ध गायन, आयुर्वेद रिकार्ड की जाने वाली अल्फा-तरंगों की (७ से १३ सायकल के प्रमुख ग्रन्थ चरकसंहिता, सुश्रुतसंहिता आदि में ज्वर, दमा, प्रति सेकेण्ड) होती है। व्यक्ति चेतना और समष्टि चेतना में सन्निपात, मधुमेह, हृदयरोग, राजयक्ष्मा, पीलिया, बुद्धिमन्दता कितना ठोस साम्य है, यह साक्षी वैज्ञानिक उपलब्धि देती है। आदि रोगों में मन्त्रों से उपचार का उल्लेख है। जबकि सामवेद इतना ही नहीं, मंत्रविज्ञानवेत्ता विभिन्न मंत्रों द्वारा शाप-वरदान, में ऋषिप्रणीत ऋचाओं के गायन द्वारा अनेक रोगों से मुक्ति का विविध रोगों से मुक्ति, अधि-व्याधि-उपाधि से छटकारा, भूत · उपाय बताया गया है। प्रेतादिग्रस्तता-निवारण तथा मारण, मोहन, उच्चाटन, कृत्याघात मंत्र विज्ञानवेत्ताओं का कहना है - ह्रस्व उच्चारण से पाप आदि प्रयोगों का दावा करते हैं और कर भी दिखाते हैं। नष्ट होता है, दीर्घ उच्चारण से धनवृद्धि होती है और प्लुत संगीतगत शब्दों का विलक्षण प्रभाव उच्चारण से होती है- ज्ञानवृद्धि। इनके अतिरिक्त अध्यात्म विज्ञानवेत्ता तीन प्रकार के उच्चारण और बताते हैं १. सूक्ष्म २. लय-तालबद्ध गायन तथा सामूहिक कीर्तन संगीत के रूप में शब्दशक्ति की दूसरी महत्वपूर्ण विधा है। इसका विधिपूर्वक अति सूक्ष्म और ३. परम सूक्ष्म। ये तीनों प्रकार के उच्चारण मंत्र जप करने वाले साधक को ध्येय की अभीष्ट दिशा में सुनियोजन करने से प्रकृति में वांछित परिवर्तन एवं मन-वचन-काया योगदान करते हैं। एक ही "ॐ" शब्द को लें, इसका ह्रस्व, को रोग मुक्त करना संभव है। संगीत से तनाव शैथिल्य हो जाता है। वह अनेकानेक मनोविकारों के उपचार की भी एक मनोवैज्ञानिक दीर्घ और प्लुत उच्चारण करने से अभीष्ट लाभ होता है। किन्तु विधा है। संगीत के सुनियोजन से रोग-निवारण, भावात्मक इसका सूक्ष्मातिसूक्ष्म जप करने पर या ‘सोऽहं'' आदि के रूप में अजपाजपन करने पर तो धीरे-धीरे ध्येय के साथ जपकर्ता का अभ्युदय, स्फूर्तिवर्धन, वनस्पति-उन्नयन, गोदुग्ध-वर्धन तथा प्राणियों की कार्यक्षमता में विकास जैसे महत्वपूर्ण लाभ संभव हैं। तादात्म्य बढ़ता जाता है। सामीप्य भी होता जाता है। इस प्रकार मंत्रोच्चारण एवं संगीत प्रयोग से असाध्य से शब्द में विविध प्रकार की शक्ति असाध्य समझे जाने वाले रोगों की चिकित्सा, मानसिक, बौद्धिक शब्द में मित्रता भी उत्पन्न करने की शक्ति है, शत्रुता भी। चिकित्सा का विधान पुरातन ग्रन्थों में है। शब्दतत्व में असाधारण पाणिनी ने महाभाष्य में बताया है - “एक: शब्द- सुष्ठु प्रयुक्त: जीवनदात्री क्षमता विद्यमान है। यह सिद्ध है। स्वर्गे लोके च कामधुक भवति'' प्रयोग किया एक भी अच्छा मंत्र जप की ध्वनि जितनी सूक्ष्म, उतना ही अधिक शक्ति शब्द स्वर्गलोक और इहलोक में कामदुहा धेनु के समान होता लाभ है। शोक-संवाद सुनते ही मनुष्य अर्धमूच्छित सा एवं विह्वल हो जाता है। उसकी नींद, भूख और प्यास मारी जाती है। तर्क, एक चिन्तक ने बताया कि जैसे हम "अर्हम्' का युक्ति, प्रमाण एवं शास्त्रोक्ति तथा अनुभूति के आधार पर उच्चारण नाभि से शुरू करके क्रमश: हृदय, तालु, बिन्दु, और प्रभावशाली वक्तव्य देते ही तुरन्त जनसमूह की विचारधारा अर्धचन्द्र तक ऊपर ले जाते हैं, तो इस उच्चारण से क्या बदल जाती है, वह बिल्कुल आगा-पीछा विचार किए बिना प्रतिक्रिया होती है? इस पर भी ध्यान दें। जब हमारा उच्चारण कुशल वक्ता के विचारों का अनुसरण करने को तैयार हो जाता सूक्ष्म हो जाता है, तब ग्रन्थियों का भेदन होने लगता है। है। ये तो शब्द के स्थूल प्रभाव की बातें हैं। आज्ञाचक्र तक पहुँचते-पहुँचते हमारी ध्वनि यदि अतिसूक्ष्मसूक्ष्मतम हो जाती है तो उन ग्रन्थियों का भी भेदन शुरू हो जाता ० अष्टदशी /2120 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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