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शान्तिलाल जारोली
कषाय समीक्षण युग पुरुष, समता विभूति, समीक्षण ध्यान योगी स्वर्गीय आचार्य श्री नानेश ने अपनी अनुभूतियों के आधार पर कहा कि कर्म बंध का मुख्य कारण है राग द्वेष । राग द्वेष रूपी वृत्तियों का संशोधन करने के लिए कषायों की समीक्षा जरूरी है। आज वैज्ञानिक भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि वृत्तियों का उद्गम स्थल अन्तःस्रावी ग्रन्थि तंत्र है। जैसा अन्तःस्रावी ग्रन्थियों का स्राव होता है वैसा भाव। जैसा भाव - वैसा स्वभाव। स्वभाव को परिष्कृत करने के लिए मनोवृत्तियों एवं कषायों का समीक्षण करना नितान्त आवश्यक है। कषाय की वृत्तियों के कारण ही व्यक्ति कई प्रकार के पाप कर लेता है जैसे हिंसा, झूठ, चोरी, व्यभिचार, परिग्रह आदि। उत्तराध्ययन सूत्र में कहा गया है कि 'कषाय अग्गिणों वृता सुमशील तवो जल' कषाय को अग्नि कहा है उसे बुझाने के लिए श्रुत, शील और तप, यह जल है।
कषाय के लिये कहा 'कष्यति इति कषाय' अर्थात् जो आत्मा को हर पल कलुषित करे, उन्हें कषाय कहते हैं। कषाय चार प्रकार से पैदा होते है :१. आत्म प्रतिष्ठित (अपनी भूल से होने वाले) २. परभव प्रतिष्ठित (दूसरों के निमित्त से होने वाले) ३. तदुभव प्रतिष्ठित (अपनी व दूसरों के निमित्त या दोनों के निमित्त) ४. अप्रतिष्ठित (बिना निमित्त होने वाले) कषाय चार प्रकार के है क्रोध, मान, माया और लोभ। इनके सोलह भेद बताए गए है, जो निम्न प्रकार है : क्र. कषाय अनंतानुबंधी
अप्रत्याख्यानी
प्रत्याख्यानी
संज्ज्वलन १. क्रोध पर्वत की दरारवत् सूखे तालाब की तराड़वत बालू रेत की लकीरवत पानी की लकीरवत १. मान पत्थर के स्तंभवत हड्डी के स्तंभवत
लकड़ी के स्तंभवत तृण के स्तंभवत ३. माया बांस की जड़वत मेढ़े की सींगवत
गौमूत्रिकावत
बांस के छिलकेवत ४. लोभ किरमची रंगवत गाड़ी के पहिये के कीट काजलवत.
हल्दी के रंग के समान के समान
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