________________ 5. जों बार बार भोगने में आवे सो उपभोग स्त्री आदि, घर आदि, कंकण कुण्डलादि, तद्गत जो अन्तराय सो उपभोगान्तराय'. 6. 'हास्य'-हसना, 7. रति' - पदार्थों क ऊपर प्रीति, 8. 'अति' - रति से विपरीत सो अति, 9. भय' -- सप्त प्रकार का भय, 10. 'जुगुप्सा' - घृणा मलीन वस्तु का देखकर नाक चढाना, 11. 'शोक' -- चित्त का विकलपना, 12. 'काम' - मन्मथ, स्त्री-पुरुषनपुंसक इन तीनों का वेर्दावकार, 13. 'मिथ्यात्व' - दर्शन मोह- विपरीत श्रद्धान, 14. अज्ञान'मृढपना, 15. “निद्रा' सोना, 16. विति'- प्रत्याख्यान से रहितपना. 17. 'राग'- पूर्व सुखों का स्मरण और पूर्व सुख व तिसक साधन में गद्धिपना, 18. 'द्वेष' - पूर्वदुःखा का स्मरण और पूर्वदुःख वा तिस के साधन विषय क्रोध / यह अठारह दूषण जिन में नहीं सो अर्हन्त भगवन्त परमेश्वर हैं / इन अठारह दूषण में से एक भी दृषण जिस में होगा सो कभी भो अर्हत भगवंत परमेश्वर नहीं हो सकता / अठारह दोषा का मीमांसा : प्रश्न : दानान्तराय के नष्ट होने से क्या परमेश्वर दान देता है ? अरु लाभान्तराय के नष्ट होने से क्या परमश्वर को भी लाभ होता है ? तथा वीर्यान्तराब के नष्ट होने से क्या परमेश्वर क्ति दिखलाता है ? तथा भागान्तराय के नष्ट होन से क्या परमेश्वर भोग करता है ? उपभागान्तराय क नष्ट हाने से - क्षय हान स क्या परमश्वर उपभाग करता है ? उत्तर : पूर्वोक्त पांचों बिध्नों के क्षय होने से भगवन्त में पूर्ण पांच शक्तियाँ प्रकट होती है / जैसे - निर्मल चक्षु में पटलादिक बाधका के नष्ट होने से देखने की शक्ति प्रगट हो जाती है, चाहे देखे चाह न देखे परन्तु शक्ति विद्यमान है / ना पांच शक्तियों से रहित होगा वह परमश्वर कैसे हो सकता है ? छठा दूषण 'हास्य' - जो हंसना आता है सो अपूर्व वस्तु के देखने से वा अपूर्व वस्तु के सुनने से वा अपूर्व आश्चर्य के अनुभव के स्मरण स आता है इत्यादिक हास्य के निमित्त कारण हैं तथा हास्यरूप पोहकर्म की प्रकृति उपादान कारण है / सो ए दोनों ही कारण अर्हन्त भगवन्त में नहीं है / प्रथम निमित्त कारण का संभव केसे होवे ? क्योंकि अर्हन्त भगवंत सर्वज्ञ, सवदी हैं, उनके ज्ञान में कोई अपूर्व एसी वस्तु नहीं जिस के देखे, सुने, अनुभवे आश्चर्य हावे / इस म काई पास्य का निमित्त कारण नहीं / और मोह कर्म तो अहंन्न भगवन्त ने सर्वथा नया रे यो उपादान कारण क्यों कर संभवे ? इस हेतु से अहंन्त में हास्यरूप दवा नहीं / र जा हसनशील होगा सो अवश्य असर्वज्ञ, असवदशो और मोह करी संयुक्त होगा : मो म'धर कैसे होवे ? 5. उपभोग की सामग्री मौजूद हो, विरतिरहित हो तथापि जिस कर्म के उदय से जीव उपभोग्य पदार्थों का उपभोग न कर सके वह 'उपभोगान्तराय' है। અરિહંતના અતિશયો 245