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ओक्टोबर-२०१६
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भविष्यवाणी की गई थी, किन्तु मेरी अपेक्षा यह सुलसा ही भाग्यवान है । वह अपनी इस मनोव्यथा के स्पष्टीकरण के लिए अरिष्टनेमि के पास जाती है और अरिष्टनेमि उसे बताते है कि ये छहो भाई वस्तुतः तुम्हारे ही पुत्र है । सुलसा ने तो इनका पालन-पोषण ही मात्र किया है । देवकी वापस लौटकर अत्यन्त शोकाकुल होती है और विचार करती है कि मैंने सात पुत्रों को जन्म दिया किन्तु उनमें से किसी की भी बालक्रीडा का अनुभव नहीं कर सकी । क्योंकि छ: सुलसा के द्वारा और एक नन्द और यशोदा के द्वारा पालित पोषित किये गए । देवकी यह विचार कर ही रही थी कि, उसी समय श्रीकृष्ण माता के चरण वन्दन हेतु आते है और माता की चिन्ता का कारण पूछते है । देवकी सारी वस्तुस्थिति को स्पष्ट करती है । श्रीकृष्ण अपनी माता के दुःख को दूर करने के लिये तथा अपने एक
और सहोदर भाई उत्पन्न होने के लिए पौषधशाला में जाकर तीन दिन का उपवास कर देव का आराधन करते है । देव प्रसन्न होकर कहता है कि निश्चय ही तुम्हें एक छोटा भाई प्राप्त होगा, किन्तु अल्प वय में ही वह दीक्षित हो जाएगा । कालान्तर में देवकी को पुत्रप्रसव होता है । श्रीकृष्ण अपने लघुभ्राता को युवावस्था प्राप्त होते देखकर सोमिल ब्राह्मण की कन्या सोमा से उसके विवाह का निर्णय करते है । दूसरी ओर द्वारिका के बाहर उद्यान में अरिष्टनेमि का आगमन होता है । अरिष्टनेमि के उपदेशों को सुनकर गजसुकुमाल को वैराग्य हो जाता है । माता-पिता और भाई के सांसारिक भोग भोगने के लिये अत्यंत आग्रह के होते हुए भी गजसुकुमाल दीक्षित होने का निर्णय लेते है । श्रीकृष्ण उनका दीक्षामहोत्सव करते है । गजसुकुमाल दीक्षित होने के दिन ही भिक्षु-प्रतिमा अङ्गीकार करते हैं
और महाकाल श्मशान में ध्यानमग्न खडे हो जाते हैं । उधर से गजसुकुमाल का भावी श्वसुर सोमिल ब्राह्मण निकलता है, गजसुकुमाल को मुण्डित श्रमण देखकर कुपित होता है । उनके सिर पर मिट्टी की पाल बनाकर धधकते अंगारे रख देता है । गजसुकुमाल ध्यान से विचलित न होते हुए उस वेदना को सहन करते हैं तथा अपने मन में किसी प्रकार का द्वेष या आक्रोश नहीं लाते है । फलतः उसी दिन मुक्ति को प्राप्त