Book Title: Anusandhan 2016 12 SrNo 71
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 307
________________ ओक्टोबर २०१६ ढांकी साहेब नामेरी स्वजननुं एक शकलचित्र - पीयूष ठक्कर २९७ १. आम जुओ तो अमारी वच्चे दसकाओनुं अंतर ने परिचय - सम्बन्धनो मांड दोढ दायको. दुनिया आखीना ए खरेखरा साहेब ने अमारा माटे साचुं कहुं तो ढांकीसाहेब नामेरी अमारी अत्यन्त काळजी लेनारुं एक स्वजन. एक फरिश्तो चालतां चालतां क्यांक अणधार्यो भेगो थई गयेलो. हतो त्यारे अवाज रूपे अमारी पडखे अमारा माथे हाथ पसवारतो हाजराहजुर हतो. एमनी उपस्थिति एटली बधी तो कोठे पडी गयेली के सांज पडे ने सात - आठना गाळे मोबाईल रण तो ए फोन साहेबनो ज छे एवी खातरी रहेती. अने नथी त्यारे आजे गमे ते घडीए एमनी साथे मनोमन गोठडी मंडाय जाय छे, आम ज. हता त्यारे ज घणी वार थई आवतुं के आ सम्बन्धनुं खरुं सत समजाशे त्यारे बहु मोडुं तो नहीं थई गयुं होय ने ! खबर नथी....... २. ए ऋणानुबन्धमा मानता. कोईना अकारण गमवा अने अकारण न गमवा विशे कोक भवनां लेणां जोता. नहितर आम बने शी रीते ? ना तो हुं भारतीय देवालय स्थापत्यनो विद्यार्थी के ना संगीतनो मर्मी के ना जैन दर्शननो अभ्यासी, ना हुं बागायत जाणुं के ना मने रत्नशास्त्रनी परख. ना अनेक भाषासंस्कृतिनो भोमियो अने छतां एमनी साथेनी आवी अधिकी अंतरंगता. हजीये आ वाते विमासुं छं. रखे, एम मानी लेता के आवी स्थिति मात्र मारी ज थती, मारी जेम एमना परिचयमां आवेला घणानो ए ज अनुभव. जाणे एमने दरेकने अनुकूळ थवानो कीमियो हस्तगत. अथवा तो दरेकमांनुं उजळं पासुं मापी लेवानी एमने दृष्टि. एमना मनमां वसी गयेली दरेक व्यक्तिने पोते सामे चाली फोन करे. सामे व्यस्तताओ होय तो अनुकूळ समय पूछे ने फरी फोन करे. निरांते वात करे. सामेवाळो माणस नानो होय के मोटो, एमने माटे सरखो. एमना घरे आवनारा पण भिन्न भिन्न माणसो. संगीतकारो, चित्रकारो, स्थपतिओ, संस्कृतना पण्डितो, इतिहासकारो, साहित्यकारो, फोटोग्राफरो, नाट्यकारो - बनावीए तो आखी एक लांबी यादी तैयार थई शके. तो ए पण खरुं के पीपल्स प्लाझाना एमना फ्लेट सामेना बन्ने फ्लेट कोलेजना विद्यार्थीओने भाडे अपाय. त्यां रहेनारा

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