Book Title: Anusandhan 2016 12 SrNo 71
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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ओक्टोबर २०१६
तत्त्वज्ञानना मूळमां पण ओक वृक्ष विविध शाखा जेवुं छे. मारो आ मुद्दो एम विशद करेलो.
मनां धर्मपत्नीना अवसान पछी केटलाक समय बाद मळवा गयो त्यारे ढांकीसाहेबना अन्तरङ्गनुं एक जूदुं ज संवेदनशील पार्श्व उघडतुं जोयुं. महिनानी आरम्भनी तारीख. अमारी चर्चा चाले. अमनां घरकाम, रसोई वगेरेनां काम एक प्रौढा अने एक छोकरी संभाळे. आमां अकने घरे जवानुं थयुं. आवी रजा लेवा : 'काम नथी ने, जाउं छं.' ढांकीसाहेब चर्चा अटकावी ऊभा थया अने बोल्या : 'ऊभी रहे. तारो पगार लेती जा. '
आम कहीने पर्स काढ्युं, खोल्युं, पैसा काढ्या, गणी थोकडी करी, ऊभा थया अने दिवंत पत्नीना फोटा सामे से पैसा राखी, अनो स्पर्श करावी, छोकरीने पगार आप्यो. लागणीवश बनेली से गई अने फरी ढांकीसाहेब पलंगे बिराज्या, टेको लई, अमारी मूळ चर्चानो दोर आगळ वधारीओ ओ पहेलां बोल्या; 'अने अम लागवुं न जोईओ के अ नथी !' अने पछी स्वगत जेम बोल्या : 'ने मने पण !'
मारे मन आ ढांकीसाहेब !
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१, पद्मावती बंग्लोझ, भाविन स्कूल सामे, थलतेज, अमदावाद - ३८००५९ फोन : ०७९-२६८५ ३६२४

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