Book Title: Anusandhan 2016 12 SrNo 71
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 273
________________ ओक्टोबर-२०१६ २६३ हिन्दुस्तानी संगीत अने कर्णाटकी संगीतमां ऊंडो रस होवाथी एमणे बनारसना वसवाट दरमियान मिश्राजी अने नारायण चक्रवर्ती पासे हिन्दुस्तानी संगीतनी साधना करी अने चन्द्रशेखर अने वीरभद्रराव पासे कर्णाटक संगीतनी साधना करी, संगीत, संगीतकारो अने नृत्यकारो विशे लेखो लख्या, मालकौंस रागना असली नाम, संशोधन कर्यु. सौराष्ट्र अने कच्छनी लोककलाओ विशे The Embroidery and Bead work of Kutch and Saurashtra (1966) नामे पुस्तक लख्यु. मूल्यवान रत्नो, मोती अने नंगोनं तलस्पर्शी ज्ञान धरावता एमणे जडतरना दागीनानो पण अभ्यास कर्यो तेमज झवेरीओ साथे अनी चर्चा पण करी हती. ___ अन्तिम वर्षोमां स्थापत्य विशेना अन्साइक्लोपीडियामां साउथ इन्डियाना टेम्पल आर्किटेक्चर उपर तेओ लखी रह्या हता, तो बीजी बाजु गुजरातनां मन्दिरोनी छत विशे सीमाचिह्नरूप संशोधनकार्य करनार डॉ. मधुसूदन ढांकी इन्डियन टेम्पल सिलिंग्स पर संशोधन करता हता. श्री शत्रुञ्जय तीर्थ विशे छेक आगम ग्रन्थोमां मळता उल्लेखमांथी मांडीने अत्यार सुधीना साहित्यिक उल्लेखो, शिलालेखो अने साहित्य परथी अंग्रेजीमां ग्रन्थ तैयार कर्यो हतो. तेमनां केटलांक बहुमूल्य पुस्तकोमा (1) The chronology of the Solanki Temples of Gujarat, 1961. (2) The Ceilings in the Temples of Gujarat, Co-author J. M. Nanavati, 1963. (3) The Maitrak and Saindhav Temples of Gujarat, Co-author J. M. Nanavati, 1969. (4) The Riddle of the Temples of Somanatha, Co-author H. P. Shastri, 1974. (5) Indian Temple Architecture in Karnakata : Inscriptions and Architecture, 1983. (6) The Indian Temple Traceries 2005, (7) Studies in Nirgrantha Art and Architecture. 2012. (८) निर्ग्रन्थ, पैतिहासिक लेख समुच्चय : २ भाग (२००२). (९) प्रभासपाटणनां जैन मन्दिरो, सहलेख : हरिप्रसाद शास्त्री. (१०) शत्रुञ्जय, कुम्भारियाजी, तारंगा, देलवाडा, जेसलमेर, राणकपुर, उज्जयन्तगिरि वगेरेनां मन्दिरो विशेनां पुस्तको गणाय. ढांकीसाहेबना बहुश्रुत अने बहुआयामी प्रदानने ध्याने लई विविध संस्थाओ द्वारा नीचे मुजबनां अलङ्करणोथी ओमने अलङ्कृत करवामां आव्या हता. (१) कुमार रौप्यचन्द्रक, (२) प्राकृत-जिन-भारती अवोर्ड, बेंगालुरु, (३)

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