Book Title: Anusandhan 2016 12 SrNo 71
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 280
________________ २७० अनुसन्धान-७१ ते दिवसे एमणे पूरी नम्रता अने गम्भीरता साथे मने का : महाराज, हुं पण गत जन्ममां जैन साधु हतो; पण वीतरागी महावीरनो नहि, पार्श्वनाथपरम्परानो साधु. मारामां ए संस्कार आजे पण छे. मारा भागे तो स्तब्धभावे श्रवण करवा सिवाय कशुं शेष नहोतुं. तेमणे पछी महावीर अने पार्श्वनाथना साधुओ, तेमना आचारो वगेरेना तफावतनी झीणवटभरी वातो करी, अने उमेर्यु के आजे तमे बधा नामथी भले महावीरना साधु कहेवाता हो, पण तमारा आचार अने व्यवहार पार्श्व-परम्पराना ज छे. छेल्ले तेमणे मांगणी करी के 'मने नानां नानां रंगीन पातरां (पात्र-काष्ठपात्र) जोईए छे. होय तो आपो.' में आप्यां, पण पूछी लीधुं के 'साहेब, आने शुं करशो ?' तो कहे के 'हुं साधु हतो. आ राखीश-साचवीने.' मारुं मन सद्भावोथी छलकाई गयुं ! में 'व्यवहारसूत्र-चूर्णि' पर काम करवानुं मांडेलु. ते जाणी तेओ बहु राजी थया. कहे के जलदी करजो. आवा ग्रन्थ प्रगट थाय तो अमारां कामोमां बहु उपयोगी थाय. ज्यारे पण मळे त्यारे अनी उघराणी अवश्य करे, छेल्ले ज्यारे 'बृहत्कल्प-चूर्णि'नो प्रथम भाग प्रकाशित थयो त्यारे ते जोईने राजी तो थया ज, पण शेष भागो जलदी प्रकाशित करवानी ताकीद पण करी. 'अनुसन्धान'थी घणा प्रसन्न हता. बधुं ज जोई जता. सूचन पण आपता. छेल्ला त्रणेक वर्षमा तेमणे अनेकवार कह्यु के 'मारे अनुसन्धान माटे लेख आपवो छे. लखवा मांड्यो छे. पूरो थाय एटले मोकलीश. तमने तकलीफ थाय एबुं लागे तो ना छापशो.' हुं पण उघराणी करतो रह्यो, अने ते अधूरुं लखाण पूरुं ना थयुं ! एकवार तेमणे कह्यु : 'अनुसन्धान'ना अङ्कोनुं अवलोकन लखवानी इच्छा छे : "सिंहावलोकन. एमां क्यां शुं खूटे छे, शी भूल के त्रुटि छे वगेरे विषे नोंध आपवी छे. तमने गमशे ?' में कां : 'आ तो अमारा माटे आनन्दनो अवसर हशे. तमने जे पण मनमां आवे ते लखजो. घणो लाभ ज थशे. अने विरोधी के न गमती वात पण यथातथ छापीशं. लेश पण भार राखशो नहि.' एमणे एकवार ते आप्यु, पछी वारंवार आपवानी भावना व्यक्त करता रह्या, पण आपी शक्या नहि. भले, पण 'अनुसन्धान' माटे तेमना मनमां खूब लागणी हती. एक

Loading...

Page Navigation
1 ... 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316