Book Title: Anusandhan 2016 12 SrNo 71
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 282
________________ २७२ अनुसन्धान-७१ ढांकीसाहेबे कहेलुं के 'चालो, एक साधु तो मारा समर्थनमा बोल्या !' पण साथे ज तेमणे मारा माटे चिन्ता पण व्यक्त करेली के 'महाराज, तमे आटलुं आकरूं लखवानी हिम्मत करो छो तो आ रूढिजड समाज तमने हेरान करशे. तमारे सावधानी राखवी.' ए पुस्तिकाओ परनो प्रतिबन्ध उठावी लेवा माटे तथा तेना पुनः वितरण तथा प्रकाशन माटे, पछी तो, घणा प्रयास कर्या, पण व्यर्थ ! गया वर्षे ढांकीसाहेबनी लेखित सम्मति मेळवीने ते पुस्तिकाओ नवेसरथी प्रकाशित करवानी हिलचाल पण करी, परन्तु प्रकाशक संस्थानो पेला तथ्यने गुपचाववानो के बदलवानो आग्रह रह्यो, अने तेमां ढांकीसाहेबनी सम्मति न थई. तथ्यो अने प्रमाणोनी बाबतमां अयोग्य बांधछोड केम कराय? शेठ कस्तूरभाईए तेमने भारपूर्वक कहेलुं के तमे शत्रुञ्जय उपर संशोधनात्मक ग्रन्थ आपो. ढांकीजीए ना पाडी के एवो ग्रन्थ जैनोने ग्राह्य नहि बने अने कोण वांचशे ? पण शेठे आग्रह राख्यो के 'भले एवं थाय, पण भक्तिस्तुतिपरक माहात्म्य-ग्रन्थो तो घणा लखाय छे, इतिहास अने तथ्यपरक ग्रन्थ पण होवो ज जोईए. अने अमे, पेढी ज ते छापशे.' डॉ. ढांकीए लगभग ४०० पृष्ठनो एक अद्भुत शोध-ग्रन्थ लख्यो; पण दरम्यानमां शेठ न रह्या अने तीर्थपुस्तिकाओ परत्वे आवो अनुभव थयो, एटले ते ग्रन्थ तेमणे दिल्हीनी कोईक (प्रायः अमेरिकन इन्स्टिट्यूट) संस्थाने प्रकाशन माटे सोंप्यो छे. परम्परावादी मानसने, आथी थयेला नुकसाननुं गणित, कदी नहि समजाय ! हुं छेल्लां त्रणेक वर्षथी तेमने कहेतो रह्यो के तमारा आवा अमुक ग्रन्थो भले जे लोको छापतां होय ते छापे (या न छापे), मने ते ग्रन्थोनी एकेक जेरोक्स नकल आपो. हुं साचवीश. प्रकाशित नहि करावं. आ तो कोईवार कांई फेरफार थाय तो ग्रन्थ तो सचवाय. साहेब मारा विभाव साथे सहमत थया, अने वारंवार कह्यु के हुं तमने नकल आपीश - चोक्कस. जो के साहेबनी वारंवारनी नादुरस्त तबियतना संजोगोमां ते वात शक्य न बनी. परन्तु पोतानां प्रकाशनो विषे तेओ साशंक तो रह्या ज. ढांकीसाहेब गमतीला अने रमृजी बहु. कोईनी, ते ख्यात विद्वान होय तो पण, पट्टी उतारवी तेमने गमे. घणानी मीमीक्री करे. कोईनो उच्चार सानुनासिक

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