Book Title: Anusandhan 2016 12 SrNo 71
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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ओक्टोबर-२०१६
२७७
आ शब्दोमां एक विद्वाननी विद्याप्रीति केवी होवी जोईए ते जोवा मळे छे. केटलाक विद्वानो वर्षों पहेला लखायेला निबन्धोने एम ने एम ज ठठाडी देता होय छे. मधुसूदन ढांकी ए जमातना नथी, न ज होई शके.
आवा विद्वानो छेक छेल्ली घडी सुधी सुधाराओ करता रहे छे. आपणा आ विद्वानने मुद्रणदोषोनी भारे चीड. अवारनवार मने कह्या करे, मारा लखाणने सरखी रीते टाईप करी आपनार मळता नथी. ___ 'आगियो अने स्वर्णभ्रमर' लेख पुनर्मुद्रित मात्र न थयो, एनी साथे संगीतविषयक बीजा लेख पण आवी मळ्या. 'सप्तक'रूपे प्रकाशित थया. वांचनारा तो न्याल थई गया. अहीं आ विद्वाननी एक बीजी खासियत, तटस्थ खासियत, घणा बधाए नोंधी छे. सामान्य रीते उत्तर हिन्दुस्तानी संगीतना चाहकोने कर्णाटकी संगीत समजातुं नथी, गमतुं नथी; एवी ज रीते कर्णाटकी संगीतचाहकोने उत्तर हिन्दुस्तानी संगीत पसंद नथी पडतुं. मधुसूदन ढांकी तो सव्यसाची कळाकार, भावक. अंगत रीते तेमने कर्णाटकी संगीत विशेष गमे, ए माटे तो तेओ पाछा नीलम्मा कडम्बी पासे ए संगीतनी तालीम पण लइ आव्या हता. आवी तटस्थता एक विरल घटना गणावी जोईए.
ज्यां तेमने नथी गमतुं त्यां तेओ मोकळाशथी, जराय संकोच विना, उघाडे छोग टीका करी शके छे, त्यारे तेमनी वाणीमां आकरापणुं, अकारापणुं प्रवेशी जाय छे. एना नमूना 'तारसप्तक मां जोवा मळशे ज.
एकवार तेमनी साथे कनैयालाल मुनशीनी वात नीकळी. तेमनी अंगत मान्यता एवी हती के मुनशीए ‘पाटणनी प्रभुता'मां जैनोर्नु पूर्वग्रहयुक्त चित्रण रजू कर्यु छे. अहिंसामा माननार जैनोने पण हिंसक भूमिकामां आलेखतां मुनशीना पूर्वग्रहो झाझा वरताय छे. साथे साथे ए पण हकीकत छे के मधुसूदन ढांकी जैन होवा छतां ज्यां जैन आचारविचारमां कशुं खोटुं प्रवेश्युं होय तो तेनी टीका करतां तेओ अचकाया नथी.
तेओ संवादना, सेतुबन्धना मानवी हता. थोडां वरसो पहेलां तो फोनना बील बहु आवता हता, त्यारे पण बीलनी चिन्ता कर्या विना सामे चालीने लांबा लांबा फोन तेओ मित्रोने कर्या ज करता हता. पोतानी नादुरस्त तबियतने कारणे सामे चालीने कोईने मळवा जई शकता न हता, पण फोन करवामां वच्चे तबियत

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