Book Title: Anusandhan 2016 12 SrNo 71
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 277
________________ ओक्टोबर-२०१६ २६७ रोचक बने अने तत्त्व सहेजे पकडाय. पोताना विषयमां अने प्रतिपादनमां खूब स्पष्ट अने दृढ. तेना समर्थनमा तर्को, युक्तिओ तो आपे ज, साथे प्रमाणो पण आपे. प्रमाणो पण, बाप रे, क्यां क्यांनां टांके ! आगम, त्रिपिटक, वेद, अभिलेख, पुरातात्त्विक अवशेषो, शब्दप्रयोगो अने विविध विद्वानोनां अभिमतो तथा अर्थघटनो ! बधुं ज एमने हैयावगुं होय, अने बहु ज कुशलताथी आ बधांय प्रमाणो के साक्ष्योनी एक जाळ रचतां जाय, अने प्रतिपाद्य विषयने यथार्थरूपे सिद्ध के स्थापित करतां जाय. एमां कोईकना जुदा के विरोधी मत होय तो तेनी समजण पण आपे, अने पछी तेनी खोड-खामी बतावी तेनां चिंथरां पण उडाडता जाय. हुं समज्यो छु त्यां सुधी एमनी अतिसूक्ष्मग्राही अने मर्मगामी दृष्टि जे तत्त्वने पकडी शकती, अने तेना आधारे तेओ जे पक्ष मांडतां, तेनुं निरसन करवानी ताकात ने आवडत कोईनामां न रहेती. हा, वितण्डा के छाशियां करीने तेमने खोटा पाडी शकाता. ___'आचार्य कुन्दकुन्दनो समय', दिगम्बर विद्वानोनी विविध रजूआतो, ते ज प्रमाणे श्वेताम्बरोनी पण केटलीक भ्रामक मान्यताओ, आ बधा विषे तेमनी पासे अकाट्य दलीलो तथा प्रमाणो रहेतां. तेनो इन्कार के खण्डन करवानुं अशक्य बनतुं. एकवार अमे लोकोए एक Seminar करेलो : 'जिनागमों की मूलभाषा' ए विषय हतो. आन्तरराष्ट्रीय कक्षानो हतो. त्रण बेठको, ६०-७० प्रतिष्ठित विद्वानो, अने दरेक बेठक माटे एक अध्यक्ष. बनेलू एवं के दिगम्बर मित्रोए "अर्धमागधी करतां शौरसेनी वधु प्राचीन भाषा, अने तेथी दिगम्बर आगमो/ग्रन्थो श्वेताम्बर साहित्य करतां प्राचीन, अने एटले दिगम्बरो आपोआप प्रथम, प्राचीन ने साचा" आवां प्रतिपादन करवा मांडेलां. अने उत्तरी भारतनी विविध युनिवर्सिटीओना कुलपति सहितना विद्वानोमां लाखोना एवोर्डनी ल्हाणी करीने तेओ पासे आ बाबतनुं समर्थन करतां लेखो प्रकाशित कराववा मांडेला. आथी चोंकी उठेला विचारशील मित्रोए तेनो समुचित रदियो आपवा विचार्यु. पण ते पूर्वे योग्य वात युक्ति अने प्रमाणो द्वारा प्रस्थापित तो थवी ज जोईए. ते माटे आ सेमिनार योज्यो. एमां दिगम्बर, तेरापन्थी, स्थानकवासी, श्वेताम्बर ए तमाम प्रकारना

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