Book Title: Anusandhan 2016 12 SrNo 71
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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ओक्टोबर-२०१६
२४५
नहीं. पण पछी तरत अमनी हळवी वातोमां ऊतरी जाय, ने कहे, ‘सरस होय छे तमारु सामयिक, हुं बधुं वांची लेतो होउं छु, हों के.' क्यारेक टपालमां 'प्रत्यक्ष' मोडु मळे, न मळे त्यारे कहे, 'भाई, मने मळतुं नथी.' तरत कुरियरथी मोकलुं.
ओमनी वार्ताओ ग्रन्थस्थ थई ओ पहेला, 'परब'मां आवती हती त्यारे एकवार पूछे : 'केम लागे छे ?' में का, 'ढांकीसाहेब, समयने तादृश करतां तमारां वर्णनो तो अधिकृत, ने रस पडे अवां होय छे पण विगतोनो भार क्यारेक वार्ताप्रवाहने नडे छे, वार्ताथी बहार नीकळी जाय छे ओवं लागे...' ओ थोडीक स्पष्टता करे, खुलासा करे. पण पछी, 'भाई, हुं वार्ताकार क्यांथी वळी...' अq जराक खोटुंय लगाडे. साहेब अटलाक आळा(टची) पण खरा.
रणजितराम सुवर्णचन्द्रक अमने अनायत थयो त्यारे, फोनमा एमणे कहेलु के, कार्यक्रममां आवशो ने ? वात चाली अना परथी जाण्युं के पोतानुं प्रतिभाव-वक्तव्य अंग्रेजी के हिन्दीमां आपवा विचारता हता. में कडं, अq ते होय ? तमे आटलुं गुजराती लख्यु, बोल्या - तो गुजरातीमां केम नहीं ? तमे गुजरातीमां बोलवाना हो, तो हुं आवीश. बीजा मित्रोओ पण कदाच कां हशे. ओ गुजरातीमां बोलेला. ने ओ चेष्टाना गुनेगार तरीके, जाहेरमां मारुं नाम पण बोलेला, स्पष्ट आंगळी चींधीने !
___ 'अमदावाद क्यारे आवो छो हवे ? घरे आवोने' - ओ फोन परनी अमनी अचूक उक्ति. कोईवार फोन करीने गोष्ठि करी लउं, खबर-अन्तर पूछी ललं. पण मोटे भागे अमना ज फोन आवे - मने भोंठपनो अनुभव थाय : मारे फोन करवो जोईतो हतो. वधु बिमार पडता गया, वारंवारनां ओपरेशनोने लीधे साव पथारीवश थता गया, गीताबहेन गयां... ओ पछी ढांकीसाहेब वधु ने वधु सम्पर्क-भूख्या थता गया. ओमनो आदर करनार चाहकवर्ग मोटो हतो, मळनाराओनी खोट न हती, छतां अमने मळवानी, फोन पर बधां साथे वात करवानी तरस रह्या करे. अमने विह्वळ थता पण जोया छे.
अमां एकवार हुं साहस करी बेठेलो. अमदावाद गयेलो. कोईकने त्यांथी फोन कर्यो : 'आq छु.' 'जरूर आवो. आवो छो ने ?' एमणे खातरी करी लीधी.
गयो तो लिफ्ट बंध ! माराथी, ओपरेशनोवाळा पगे कंई छ माळ चढाय नहीं. पाछा वळवा विचार्यु पण थयुं के एकवार कयुं छे एंटले हवे ओ तीव्रताथी

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