Book Title: Anusandhan 2006 09 SrNo 37
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 9
________________ अनुसन्धान ३६ एवं एगुणतीसाए दोसेहिं चउगुरुगाहिगारो सम्पत्तो ।। छ ।। कम्मुद्देसिय जावंतियम्मि १ मीसस्स पढमभेयम्मि १॥ पंचविहधाइदोसे ४ दुविहे दूइत्तदोसम्मि ॥२२॥ मंतश्वणीमगविज्जा१ कोहारहंकार१ जोग १ चुन्ने ओ १। तीयनिमित्ते१ संबंधिसंथवे १ दव्वकीयदुगे २ ॥२३॥ आजीवणासु पंचसु ५ तिविहे च्छेज्जे ३ णिसट्ठभेयतिगे ३ । भावायकीयदोसे १ लोइय पामिच्चदोसम्मि ॥२४॥ पत्तेयजियाणंतर निक्खिविउ ६ पिहिय ६ साहारिय ६ (साहरिए) । अपरिणय६ छड्डिएसु ६ संकुचिउब्भिन्नगकवाडे १ ॥२५॥ निप्पच्चवाय परगामाहड१दोसे पगासकरणम्मि । उक्कोसगमालोहड १ लोइय परियट्टदोसेसु १ ॥२६॥ सच्चित्तकद्दमेणं पमक्खिए १ पुव्व १ पच्छ १ कम्मेसु । गरहियमज्जाइपमक्खियम्मि १ बायरतिगिच्छाए ॥२७॥ संसत्तागरहियमक्खियम्मि १ संसत्त-लित्तहत्थम्मि ।१ संसत्त-लित्तमत्ते१ पिहि पुहिने १ सधूमम्मि १ ॥२८॥ निक्कारणोवभुत्ते१ कारणसब्भावसंभवाभुत्ते १ । पत्तेयवणम्मीसे १ भणियपमाणाइरेगम्मि १ ॥२९॥ अप्पहु १ वुड्ड १ नपुंसग १ जरिय १ ऽव्वत्त१मत्तगुरम्मत्ता १। छिनकर १ नियलबद्ध १ गह १ त्थंऽदुयबद्ध १ छिनपय(या) १ ॥३०॥ वेविर १ कंडंती १ बाललहुगा १ गुम्विणी १ विरोलंती १ । भज्जंती १ पीसंती १ पाहुडिठविगो १ गोत्तयंतीसु १ ॥३१॥ पत्तेगेगेंदियमारिगाए तिविहं सपच्चवायाए ३ । संसत्तदव्वलित्तग-इत्थासत्ताइ दाईए १ ॥३२॥ साहारण-विगलिंदिय-चउक्कगइगाढतावणकरीए । ५ साहारण १ चोरियगं १ परमुद्दिसिउं १ ददंतीसु ॥३३॥ पंचेंदियजीवसरीरथोवपरितावगावराहे य । १ चउलहुगं पच्छित्तं भणियं जिणवर-गणिदेहिं ॥३४|| सएणं अट्ठावीसुत्तरेण दासाणं चउलहुगाहिगारो सम्पत्तो ॥छ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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