Book Title: Anusandhan 2006 09 SrNo 37
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 65
________________ 60 अनुसन्धान ३६ हो या ज्ञानयोग, ध्यानयोग हो या निष्काम कर्मयोग हरेक में गीता आखिर में भक्ति, श्रद्धा, अनन्यभाव का महत्त्व बताती है । भक्ति को 'राजविद्या राजगुह्य' कहती है । योगियों में भी योगी भक्त को श्रेष्ठ बताया है । ३५ सांख्य तथा ज्ञानमार्ग में भी 'ज्ञानी भक्त' को ऊँचा स्थान दिया है । ३६ इस अध्याय में तो स्वतंत्र रूप से ईश्वरी कृपा का महत्त्व बताया है । मतलब यह हुआ की भक्तिमार्ग तो श्रेष्ठ हैं, लेकिन इस प्रकार का अद्भुत विश्वदर्शन आदि करना है तो अनन्य भक्ति के सिवा दूसरी भी चीज उतनी ही आवश्यक है, उसका नाम है 'ईश्वरी कृपा' । यह कृपा ही आखिर सब साधनों के ऊपर है । जैन दर्शन अपना कर्म और पुरुषार्थ के सिवा इस प्रकार की ईश्वरी कृपा में विश्वास नहीं रखता । वस्तुतः ईश्वरी कृपा तो दूर, इस प्रकार के ईश्वर या परमेश्वर में ही विश्वास नहीं रखता । जैन दर्शन में किसी भी तरह की परावलंबिता नहीं है । आत्मतत्त्व पर श्रद्धा, ज्ञान तथा चारित्र के बल पर मनुष्य अपनी आध्यात्मिक उन्नति कर सकता है । इस के बल पर ही उसे मनःपर्याय, अवधि तथा केवलज्ञान की प्राप्ति हो सकती है । ३७ विश्व का स्वरूप भी वह रत्नत्रय की आराधना से जानता है, उसके लिए अलग से किसी सद्गुरु अथवा परमेश्वरी कृपा की आवश्यकता नहीं है । वेद (श्रुतज्ञान), ज्ञानप्राप्ति ( स्वाध्याय, अध्ययन), दान, तप आदि सब आस्रव रोकने के तथा संवर के साधन, याने 'चारित्र' है । ३८ श्रद्धायुक्त चारित्रपालन से जीव ऊर्ध्वगामी होकर अंतिम ध्येय याने मोक्ष तक पहुँचता ही है । इस गति को रोकना या बढाना किसी भी दूसरी शक्ति के वश में नहीं है । सारांश, परमेश्वरी कृपा का होना न होना जैन दर्शन के मुताबिक कोई मायने नहीं रखता । खुद के बलपर जो विश्वरूपदर्शन जैन दर्शन में होगा, वह नि:संशय इस प्रकार रौद्र, अद्भुत और चौंका देने वाला नहीं होगा । इसीलिए केवली कभी भयभीत, कंपित भी नहीं होते । आध्यात्मिक उन्नति के विविध मार्गों को यकायक दुय्यम स्थान देकर 'ईश्वरी कृपा' की सर्वोपरिता प्रस्तुत करना खुद वैदिक परंपरा के अनुसार भी तर्कशुद्ध नहीं मालूम पडता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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