Book Title: Anusandhan 2006 09 SrNo 37
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 74
________________ September-2006 छे. अन्य परम्पराओमां मठ-मन्दिरना महंत के पूजारीओ हस्तक आवी सामग्री पडी होय छे तेनी व्यवस्था पण ते ते संप्रदायना शिक्षित लोकोने सोंपाय तो ज बचे. जैनोमां पण केटलीक जग्याए हस्तलिखित साहित्य उपाश्रयो-ज्ञानमन्दिरोमां कबाटोमां एम ने एम पड्युं होय छे. ए सामग्री योग्य संस्था के संघने सोंपी देवानी चीवट त्यांना वहीवटदारोए राखवी जरूरी छे. ___ अनु० ३६नी सामग्री प्रशिष्ट - विशिष्ट छे. 'तीर्थमाला स्तव' जेवी कृति ऐतिहासिक मूल्य धरावे छे. आवी कृति अद्यापि अप्रगट रही ए आश्चर्य उपजावे एवी वात छे. अनुसन्धान जेवा पत्रमां आ प्रकारनी रचनाओ प्रकाशित थती रहे तो अभ्यासीओ-संशोधको तेनो लाभ ऊठावी शके. आ स्तवमां तीर्थो-नगरो-ग्राम-मन्दिरो सम्बन्धी तथा इतर नानी मोटी विगतो-तथ्योनो राशि भरेलो छे. सम्पादकश्रीए कृतिनो सारांश अने जरूरी टिप्पणो आप्यां छे. पाठ प्रायः शुद्ध छे, केटलेक स्थळे खण्डित छे. गा. ९०मां 'समसेसे' शब्द देश्य 'समसीसी' (बराबरी, स्पर्धा)- स्मरण करावे छे. 'नन्दि'नी बराबरी करनार' एवो अर्थ करीए तो 'नन्दि' एटले शुं ? ए प्रश्न खडो थाय. गा. १०३मां 'कच्छ' नो उल्लेख छे ते वर्तमान कच्छनो ज छे- ए सौराष्ट्र-कच्छ-पंचाल एवा सामीप्यथी निश्चित थाय छे. ८५मी गाथामां 'पनरस छे. आमां पाठदोष जणातो नथी. अन्य गाथाओमां आ ज पद्धतिए वर्षनिर्देश थयो छे :- ‘पनरसवास सया' (९१), 'सतरसंवच्छरसया' (१०१). बे श्राविकाओना व्रतग्रहणनी सुन्दर प्राकृतभाषा बद्ध टीप आ अंकमां छे. श्राविकाओनी धार्मिकता उपरांत तेमनी शैक्षणिक योग्यता पण आमां प्रतिबिंबित थाय छे. गा. १९मां ‘णाहथवणीए' छे त्यां 'णास' होवानी सम्भावना गणाय. _ 'श्रीसिद्धचक्र यन्त्रोद्धार'ना कर्ता चन्द्रकीर्तिसूरिने रत्नशेखरसूरिना शिष्य जणाव्या छे परन्तु प्रशस्तिमां रत्नशेखरसूरि माटे 'सुविहितशिरःशेखर' एवो आदरसूचक उल्लेख थयो छे, जो गुरु होय तो तेवो उल्लेख सहजपणे कर्यो होत. महो० विनयसागरजीए श्रीआनन्दघनविषयक विशिष्ट उल्लेख धरावती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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