Book Title: Anusandhan 2006 09 SrNo 37
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 47
________________ अनुसन्धान ३६ १५. शान्तिनाथ, पार्श्वनाथ महावीर स्वामी के मुख्य मन्दिर हैं । १४. इस पद्य में चित्रकूट (चित्तौड़) दुर्ग का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि जहाँ झरने बह रहे हैं, उच्च कीर्तिस्तम्भ है, जलकुण्ड है, नदी बहती है, पुल भी बंधा हुआ है । उस चित्तौड़ में सोमचिन्तामणि के नाम से प्रसिद्ध चिन्तामणि पार्श्वनाथ का विशाल मन्दिर है। साथ ही ऋषभदेव आदि के २२ मन्दिर और हैं जिनको मैं नमस्कार करता हूँ। पद्य १५ में करहेटक (करेडा) में विस्तीर्ण स्थान पर तीन मण्डप वाला चौवीस भगवानों के देहरियों से युक्त मन्दिर है। साथ ही ७२ जिनालयों से युक्त जिनेन्द्रों को मैं नमस्कार करता हूँ। १६. १६वें पद्य में कवि स्थानों का नाम देता हुआ - सालेर (सालेरा), जहाजपुर मण्डल, चित्रकूट दुर्ग, वारीपुर ( ), थाणक (थाणा), चङ्गिका (चंगेड़ी), विराटदुर्ग (बदनोर), वणहेडक (बनेड़ा), घासक (घासा) आदि स्थानों में स्थापित जिनवरों को नमस्कार करता है । १७. इसमें दीकसी (डभोक) ग्राम में विराजमान देवेन्द्रों से पूजित युगादि जिनेश को कवि प्रणाम करता है। १८. इस पद्य में अणीहृद (?)में विराजमान अधिष्ठायक पार्श्वदेव के द्वारा सेवित पार्श्वनाथ को और नीलवर्णी हरिप्रपूजित नेमिनाथ को नमस्कार करता है। नचेपुर (?)में आठ जिनमन्दिर हैं । वे तोरण, ध्वजा आदि से सुशोभित हैं । वर्द्धमान स्वामी प्रतिमा पित्तल परिकर की है । श्रीचन्द्रप्रभ, वासुपूज्य, ऋषभदेव और शान्तिनाथ आदि मूलनायकों जो कि सात जिनमन्दिरों में विराजमान हैं उनको नमस्कार करता है। २०. २०वें पद्य में उच्च डुंगरों से धिरा हुआ और अजेय डूंगहपुर (डूंगरपुर) और महाराजा कुमारपाल द्वारा निर्मापित ईडरपुर में ऋषभदेव भगवान को तथा तलहट्टिका में विद्यमान समग्र चैत्यों को कवि नमस्कार करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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